tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post1148224838208151131..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: गाय खाने वाले हिंदू, सूअर खाने वाले मुसलमानअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-68032239595726280622008-12-27T17:13:00.000+00:002008-12-27T17:13:00.000+00:00एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको ...एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको रंगना, एक सुर में सबको कोसना, एक गाली में पूरी जमात को लपेटना, एक सोच में पूरे देश को समेटना, एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही नहीं.<BR/><BR/><BR/>- विचारणीय आलेखप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-10101513348597214992008-09-21T03:38:00.001+01:002008-09-21T03:38:00.001+01:00aapne hindi me likha, yeh padhkar aur jaankar man ...aapne hindi me likha, yeh padhkar aur jaankar man ko atyadhik khushi huiyi ki aaj bhi hindi ko manane wale is duniya me hai, alsubah yah post padh kar dil bag bag ho gaya aur is umeed ke saath me dobara is blog par aana chahunga :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-89408895398780886302008-09-16T11:33:00.000+01:002008-09-16T11:33:00.000+01:00"ख़ास तौर पर तब, जब हर तरफ़ बम फट रहे हों..." और ...<B>"ख़ास तौर पर तब, जब हर तरफ़ बम फट रहे हों..." </B> और भड़काने वाले, फोड़ने वाले और बाद में सफाई देने वाले निर्विकल्प एक समुदाय से ही आते हों. किसी भी समूह का सरलीकरण बुरी बात है मगर बिना आग के धुंआ नहीं होता है अनामदास जी. <BR/>बधाई, बहुत अच्छा और सुरुचिपूर्ण लेख है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-72947594062934231182008-09-16T08:45:00.000+01:002008-09-16T08:45:00.000+01:00पहली बार आपके ब्लॉग पर आया। काफी सुंदर आलेख, बहुत...पहली बार आपके ब्लॉग पर आया। काफी सुंदर आलेख, बहुत अच्छी बात लगी कि<BR/><BR/>'जेनरलाइजेशन अक्सर ग़लत साबित होते हैं लेकिन फ़ितरतन हम बाज़ नहीं आते.'जितेन्द़ भगतhttps://www.blogger.com/profile/05422231552073966726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-24724569390455377862008-09-15T18:20:00.000+01:002008-09-15T18:20:00.000+01:00सही लिखा है भाई अनामदास जी. मराठी, गुजराती, तमिल, ...सही लिखा है भाई अनामदास जी. मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, बिहारी, बंगाली, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन ब्रांड तो बिना ढूंढें और धमकाते हुए मिल जायेंगे आपको लेकिन मनुष्य नामक ब्रांड की बात करने वाले मनुष्य विश्व समाजों में लगातार घट रहे हैं. आश्चर्य है ब्लॉग जगत में सड़ांध मचाने वाले कई 'ब्रांड' आप पर टूट क्यों नहीं पड़े. इससे साबित है कि आपने बात पते की कह दी है.विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-16232846055567485602008-09-15T16:42:00.000+01:002008-09-15T16:42:00.000+01:00In the Complete LIGHT & Intense Darkness, the ...In the Complete LIGHT & Intense Darkness, the shades of GREY too<BR/>linger in between.<BR/><BR/> Let us hope that the "Meek shall<BR/> inherit the World " <BR/> as the Bible says !<BR/>( sorry to comment in English,<BR/> I'm away from my PC )लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-74648527130525583002008-09-15T13:54:00.000+01:002008-09-15T13:54:00.000+01:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-4539163203471926692008-09-15T11:42:00.000+01:002008-09-15T11:42:00.000+01:00"........आदमी के ऊपर पता नहीं कितनी चीज़ें सवार है..."........आदमी के ऊपर पता नहीं कितनी चीज़ें सवार हैं--उसकी जाति, क्षेत्र, धर्म, हैसियत लेकिन वह बार-बार अपनी ब्रैंडिंग को ग़लत साबित करता रहता है, नई सबब्रैंडिग बनाता रहता है...उसे भी झुठलाता रहता है. कभी सैकड़ों की तादाद में आईएएस बनकर बिहारियों के पिछड़े होने की ब्रैंडिंग को, कभी बंगलौर में सबसे अधिक पब खोलकर दक्षिण भारतीयों के परंपरागत होने की ब्रैंडिंग को.<BR/><BR/>दिल्ली के कोई जैन साहब घनघोर माँसाहारी बन जाते हैं, सीरिया के कोई अबू हलीम घोर शाकाहारी हैं जो दूध-शहद से भी परहेज़ करते हैं... मगर हज़ारों-लाखों अपवादों के बावजूद एक-दूसरे को खाँचे में डालना ही नियम है, क्योंकि सबसे प्रभावी नियम, सुविधा का नियम होता है.<BR/><BR/>एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको रंगना, एक सुर में सबको कोसना, एक गाली में पूरी जमात को लपेटना, एक सोच में पूरे देश को समेटना, एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही नहीं. <BR/><BR/>ख़ास तौर पर तब, जब हर तरफ़ बम फट रहे हों."..........<BR/><BR/> वाह वाह वाह,क्या बात कही आपने .एकदम सहेजकर रखने लायक लेख.बहुत ही उम्दा,विचारणीय. ईश्वर करें यह लोगों के दिलों में उतर उसे झिंझोड़ जाए.रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-48016005502131853392008-09-15T10:40:00.000+01:002008-09-15T10:40:00.000+01:00इग्नोरेंस से उपजते हैं वे पूर्वाग्रह जिनकी ओर लेख ...इग्नोरेंस से उपजते हैं वे पूर्वाग्रह जिनकी ओर लेख इशारा कर रहा है, ख़ुले दिमाग़ वाले को सारे बंगाली मछली खाते नहीं दिखते, ना सारे बिहारी बुद्धू। फिर चीज़ें बदल भी रही हैं - क्या से सत्य नहीं कि आज मुल्ला ब्रांड हो या मोदी ब्रांड - उनकी मिट्टी पलीद करनेवालों में हर ब्रांड के लोग शामिल हैं, हिंदू हों चाहे मुसलमान? आसानी से हर चीज़ को सही मनवा लेने का ज़माना अब इतना आसान नहीं है। अमुक ब्रांड-तमुक ब्रांड में घिरे रहकर भी बे-ब्रांड सोच रखनेवालों का वजूद ख़त्म नहीं हुआ - स्वयं आपका लेख उसका प्रमाण है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-67698129263545645582008-09-15T10:14:00.000+01:002008-09-15T10:14:00.000+01:00एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको ...एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको रंगना, एक सुर में सबको कोसना, एक गाली में पूरी जमात को लपेटना, एक सोच में पूरे देश को समेटना, एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही नहीं. <BR/><BR/><BR/>काश सभी ऐसा सोच पाते...फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-11886793806956954542008-09-15T08:45:00.000+01:002008-09-15T08:45:00.000+01:00अनामदास जी, इस सोच और मुहिम की जरूरत है. सच कहें त...अनामदास जी, इस सोच और मुहिम की जरूरत है. सच कहें तो इसी मुहिम की जरूरत है...<BR/><BR/>खबरी<BR/>http://deveshkhabri.blogspot.com/देवेश वशिष्ठ ' खबरी 'https://www.blogger.com/profile/03089045465753357873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-60765847327822700532008-09-15T08:33:00.000+01:002008-09-15T08:33:00.000+01:00गुणावगुण व्यक्ति आर्धारित देखा जाना चाहिये। एक व्य...गुणावगुण व्यक्ति आर्धारित देखा जाना चाहिये। एक व्यक्ति का विश्लेषण ही कठिन काम है; पूरे जाति-वर्ग-समाज पर टैग लगाना ईमानदारी नहीं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-3481686640353964492008-09-15T08:26:00.000+01:002008-09-15T08:26:00.000+01:00दिमाग के कुछ सोये हुए हिस्सों को जगाने वाला एक लेख...दिमाग के कुछ सोये हुए हिस्सों को जगाने वाला एक लेख.....सचमुच......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-64504297506611816352008-09-15T07:05:00.000+01:002008-09-15T07:05:00.000+01:00अविश्वास के इस मौसम में, जब संशय के काले बादल अंध...अविश्वास के इस मौसम में, जब संशय के काले बादल अंधेरा फैला रहे हों, आपकी ये टिप्पणी आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करती है। इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को फॉरवर्ड करें - मैं भी करता हूं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-72395829960607788522008-09-15T06:13:00.000+01:002008-09-15T06:13:00.000+01:00सच्चाई से आँखे चुराना भी उतना ही गलत होता है.सच्चाई से आँखे चुराना भी उतना ही गलत होता है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-64453062052860533652008-09-15T04:56:00.000+01:002008-09-15T04:56:00.000+01:00ये तसल्लीजनक , सुकूनदायक सोच कितनी दुर्लभ है | अना...ये तसल्लीजनक , सुकूनदायक सोच कितनी दुर्लभ है | अनामदास खुद ईद के चांद हो गये हैं |Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-70824456766914129852008-09-15T02:43:00.000+01:002008-09-15T02:43:00.000+01:00अनब्रांडेड लोगों को ब्रांडेड लोगों से अधिक दिक्कते...अनब्रांडेड लोगों को ब्रांडेड लोगों से अधिक दिक्कतें झेलनी पड़ती है, उसी तरह जैसे बिना किसी लेबिल के उत्पाद को हीन मान लिया जाता है.<BR/><BR/>एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको रंगना, एक सुर में सबको कोसना, एक गाली में पूरी जमात को लपेटना, एक सोच में पूरे देश को समेटना, एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... कतई कतई कतई सही नहीं हैमैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-31574912032642932912008-09-15T02:05:00.000+01:002008-09-15T02:05:00.000+01:00एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही न...एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही नहीं. <BR/><BR/><BR/>--साधुवाद इस सोच अर..काश, सब ऐसे ही सोच पाते तो कितना अमन होता!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com