tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post2890399139139106950..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: मुहल्ले, क़स्बे और महानगर में भटकता अनामदासअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-38166105162651133042007-06-28T06:54:00.000+01:002007-06-28T06:54:00.000+01:00इस लिखने में मैं भी शामिल हूं। क्योंकि उस धूल-मिट्...इस लिखने में मैं भी शामिल हूं। क्योंकि उस धूल-मिट्टी से मेरा भी नाता रहा। हम सब अपने कंधों पर अपना अतीत लिए चलते हैं- ये वह सलीब है जो कभी सैलाब बन जाता है। लेकिन इसे विस्थापन का वरदान मानो- क्योंकि वे सारी चीजें जब स्मृति बन जाती हैं तो बेहद मूल्यवान हो उठती हैं। उनके ही जरिए ये देखना संभव होता है कि हम अपनी संपू्र्णता में कैसे हैं और क्या हो रहे हैं। <BR/><BR/>वाणभट्टAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-19786233241118308572007-06-22T18:24:00.000+01:002007-06-22T18:24:00.000+01:00बहुत अच्छा लिखा अनामदास जी। यही तो विकासवाद की कहा...बहुत अच्छा लिखा अनामदास जी। यही तो विकासवाद की कहानी है, दुनिया बस आगे-आगे चलती है, बीता वक्त लौटकर नहीं आता।<BR/><BR/>वैसे हमारे साथ इनमें से बहुत सी बातें अब भी हैं। हम अब भी ६ नंबर पर पंखा लगा कर सोते हैं। :)ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-21386027958152882602007-06-22T14:04:00.000+01:002007-06-22T14:04:00.000+01:00बचपन याद आ गया. बहुत कम ऐसा लिखा जाता है जिसमें बा...बचपन याद आ गया. बहुत कम ऐसा लिखा जाता है जिसमें बारिश के शुरुआती दौर की माटी की गमक मिलती है. ... ज्यादा कुछ नहीं कह सकते सिर्फ इसके कि शानदार रहा. हो सके तो कागज की कश्ती पर भी कुछ लिखे...Ramashankarhttps://www.blogger.com/profile/09873866884519903643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-68090475041741320562007-06-22T12:22:00.000+01:002007-06-22T12:22:00.000+01:00यादें आज ढूँढा तो पाया...रूह का एक टुकड़ा कहीं रह ...यादें <BR/><BR/>आज ढूँढा तो पाया...<BR/>रूह का एक टुकड़ा कहीं रह गया..<BR/><BR/>पुरानी सी वह समय की दीवार...<BR/>बीते पलों की धूल में लिपटी हुई...<BR/>फाँद कर चली वहीं बचपन में....<BR/>शायद यहीं खोया वह टुकड़ा मेरा....<BR/>खड़ी चारपाई से छनी धूप में...<BR/>टूटे सजे खिलौनों के साथ...<BR/>जामुन के पेड़ के नीचे...<BR/>गन्ने के चबाने के सुर के साथ..<BR/>नंगे पाँव में रंगबिरंगी उन तितलियों के पीछे...<BR/>कहीं उन पछीटों के साथ...<BR/>लुड़कती हुई उन अँटियों के खजाने में...<BR/>कहीं कीचड़ में गड़े सरिये के साथ....<BR/>पत्थर का टुकड़ा स्कूल से घर तक जो चला...<BR/>तो कहीं पाँच पैसे के लाल बेर के साथ...<BR/>कहीं आटे में काँच मिला माँझा बनाकर...<BR/>तो उस उड़ती अटकती पतंग के साथ....<BR/>गिरते हुए बारिश मे भीगी हुई....<BR/>कहीं उस रंगबिरंगे छाते के साथ....<BR/>लम्बी फ्रौक में माँ से छुपाकर रखी घुटने की चोट ...<BR/>तो टूटे हुए दाँत की मुस्कराहट के साथ...<BR/>सावन के मौसम में मेहंदी लगाकर.....<BR/>भैया की कलाई में राखी के साथ.....<BR/>कहीं बन्दर का खेल...कहीं सपेरे की बीन ...<BR/>कभी हाथी के सवारी के साथ.....<BR/>मेले में खरीदे बाजे का शोर...<BR/>तो कहीं शादी के बैण्ड और पताशे के साथ....<BR/>अमरूद के पेड़ पर पकडम पार्टी...<BR/>कहीं चोरी के आम नमक के साथ....<BR/>गर्मी की रातों में तारों के नीचे.....<BR/>सर्दी की खिली धूप में संतरे के साथ....<BR/><BR/>दो कुर्सी के साथ एक घर जो बनाया...<BR/>बोतलों के ढक्कनों से बरतन सजाये...<BR/>फटे एक कपड़े की गुडिया की साड़ी....<BR/>बस वहीं खड़ा मिला वह टुकड़ा मेरा...<BR/>लीपी हुई दीवार के पीछे खड़ा...<BR/>मासूम, नटखट, शरारत भरा....<BR/><BR/>कान से पकड़ा उसे....तो कहने लगा...<BR/>तू चल मुझे रहने दे यहाँ.....<BR/><BR/><BR/>दीवार फाँद वापस चली आई...<BR/>थोड़ी सी रूह पीछे छूट गई...<BR/>साथ यादें ले आई....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-32169427739626090272007-06-22T11:45:00.000+01:002007-06-22T11:45:00.000+01:00मेरी नम आंखों के पोरों से झांक रही हैं कुछ बूंदें....मेरी नम आंखों के पोरों से झांक रही हैं कुछ बूंदें... ... इससे आगे शब्द नहीं मिल रहे हैं मुझे।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-88093918513561851572007-06-22T11:05:00.000+01:002007-06-22T11:05:00.000+01:00Ab dekhiye kyaa vidambana hai--jinko aapne aade ha...Ab dekhiye kyaa vidambana hai--jinko aapne aade haathon liyaa vo sabse pahle aap par taaliyaan bajaane chale aaye.Jis nostalgia par aapne sawaal uthaayaa usee ke shrenee men is post ko daal diyaa gayaa.shaayad hum jaldee-jaldee surakshit kone talaash lenaa chahate hain.Aap kee chintaayen samajhne liye Pratikriyaaon kee twaraa se kaam lena anyaay hoga.Vaise aap kis videsh me rahte ho?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-32191351573202697202007-06-22T10:36:00.000+01:002007-06-22T10:36:00.000+01:00जियरा हरियर हो गईल रहे तोहार ब्रेड पकौडा-वाली कवित...जियरा हरियर हो गईल रहे तोहार ब्रेड पकौडा-वाली कविता पढ के | अबकी चुनौव्वा मेँ एक नारा लगत रहल ,सोचली चिट्ठवा पर कैसे जाई ? उहे कविता रस्ता देखा देलेस |जहाँ बसपा क पण्डित लडत रहलन , उहाँ पणडितन मेँ नारा लगे , " शुकुल हमारा भाीई है , 'पकौडे' से बसपाीई है " |अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-49588389184412720772007-06-22T10:02:00.000+01:002007-06-22T10:02:00.000+01:00anaamdas ji yah sahi hai ki vaqta lautakar nahin a...anaamdas ji yah sahi hai ki vaqta lautakar nahin aata. lekin yaadgar abhivyaktiyoun ko bhoot ka pralaap kahakar kharij nahin kiya ja sakta. nostalgia ko chaahe jis bhi mania ka nam dain, jab hum ateet se nikalte hain to bhavishya mein un kshanon ko yaad kar apane aap ko dhandhas hi to dete hain. us bhoot (kaal)ka vartaman hamen us samay bhale hi tadapaye lekin aaj vah hamen achchha lagata hai. isliye gali, mohalle aur kasbe gaon na to shahar hi huye aur na hi gaon.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-37957573750695577482007-06-22T07:02:00.000+01:002007-06-22T07:02:00.000+01:00तो अनाम्दास जी आप तो अपने समाज और अपने आस पास की द...तो अनाम्दास जी आप तो अपने समाज और अपने आस पास की दुनियां को खूब बेहातर समझते है. अगर आप ऐसा ही लिखते रहे तो एक ना एक दिन आपको सबके सामने आना होगा क्योकि जैसा आप लिख रहे है उससे व्यक्तिगत तौर ये तो ज़रुर कहना चाहुंगा कि इस बार का बेस्ट ब्लाग का सर्वोच्च सम्मान आप को मिलना तय लग रहा है तो क्या पुरस्कार लेना आप पसन्द करेंगे या नहीं. खैर तब की तब देखेंगे. अच्छे लेखन के लिये आपको सलाम !!!! आपके इस लेखन ने दिल को छू लिया है लिखते रहे हम पढ्ते रहेंगे..VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-7650669474708781622007-06-22T06:36:00.000+01:002007-06-22T06:36:00.000+01:00यादे हमारे बीते दिनो की कर देती है सीना चाकफ़िर किस...यादे हमारे बीते दिनो की <BR/>कर देती है सीना चाक<BR/>फ़िर किसलिये मुड के <BR/>पीछे देखना बार बार<BR/>पर दिल कहा भुलाता है<BR/>इक ये भी मुशकिल है यारArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-26276554828657620772007-06-22T06:18:00.000+01:002007-06-22T06:18:00.000+01:00ये तो गलत बात है । एक तो हम वैसे ही पीछे लौटते रहत...ये तो गलत बात है । एक तो हम वैसे ही पीछे लौटते रहते हैं और अब आप भी कहाँ कहाँ ले गये । वो भी उस इकॉलॉजी की दुनिया में जहाँ मेंढक , फतिंगे , चेरा , ओह! कितनी मुश्किल से भूले थे इनको ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-86476152086493734462007-06-22T06:10:00.000+01:002007-06-22T06:10:00.000+01:00आलोक पुराणिक से उधार लेकर कहता हूं- शानधारम. हालां...आलोक पुराणिक से उधार लेकर कहता हूं- शानधारम. हालांकि इससे ज़्यादा कहता तो दिल की बात कह पाता लेकिन दिहाडी का दबाव है भाग रहा हूं. क्या कोई ऐसा दिन भी आयेगा जब आ.पु. से भी आगे जाकर कोई हमें नया शब्द देगा--जैसे शा.धा. ?इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-64946873317587731072007-06-22T05:59:00.000+01:002007-06-22T05:59:00.000+01:00आपसे सहानुभूति है मित्र. आपका नोस्टॉल्जिया हमारा व...आपसे सहानुभूति है मित्र. आपका नोस्टॉल्जिया हमारा वर्तमान है. पर यह कब तक रहेगा, कह नहीं सकते. <BR/><BR/>यह भी है कि आप रियर व्यू देखते हुये गाड़ी नहीं चला सकते. गाड़ी चलाना नोस्टॉल्जिया से ज्यादा महत्वपूर्ण है.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-77307990262941085302007-06-22T05:57:00.000+01:002007-06-22T05:57:00.000+01:00सन्ट लिख मारा है अनामदास जी।आप शायद विदेश में बैठे...सन्ट लिख मारा है अनामदास जी।<BR/>आप शायद विदेश में बैठे हैं..पर हम यहीं होकर भी ३-४ महीने में एक बार "घर" जाकर यादें ताजा करने की कोशिश करते हैं...<BR/>और बदलाव तो हो ही रहा है..Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-16902992152579287862007-06-22T05:35:00.000+01:002007-06-22T05:35:00.000+01:00जीवन के बदलते परिवेश को अच्छी तरह से रखा आपने. इसी...जीवन के बदलते परिवेश को अच्छी तरह से रखा आपने. इसी अवस्था को हमारे भाषा में नराई कहते हैं..<A HREF="http://kakesh.wordpress.com/2007/04/10/naraaee_1/" REL="nofollow"> मैने इस पर लिखा भी था एक बार </A> . <BR/><BR/>लेकिन इस उहापोह से कैसे बचा जाय.गांव है जो मिल नहीं सकता.शहर जीने नहीं देता तो क्या करें? कैसे जियें? कहाँ जियें?<BR/><BR/>पेट भूखा हो तो यारो कब नजर आते हैं ख्वाब!!काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-80608034169978650802007-06-22T05:19:00.000+01:002007-06-22T05:19:00.000+01:00शानदार!!! बहुत से पल फ़िर जिला दिए आपने!!शानदार!!!<BR/> बहुत से पल फ़िर जिला दिए आपने!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-4936939314796123002007-06-22T04:58:00.000+01:002007-06-22T04:58:00.000+01:00वाह क्या बात है मित्र.. अब आप ने धकेल दिया पीछे गर...वाह क्या बात है मित्र.. अब आप ने धकेल दिया पीछे गर्मी के दिनों में.. छै नम्बर का पंखा चला कर डेढ़ घंटे की नींद..बहुत प्यारी पोस्ट..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com