tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post2999706878483345147..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: नवरात्र में शेर और स्कूटर पर सवार माताएँअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-91350269577402565432007-11-09T19:01:00.000+00:002007-11-09T19:01:00.000+00:00कई दिनों बाद चक्कर लगा है। बहुत कुछ सार्थक , विचार...कई दिनों बाद चक्कर लगा है। बहुत कुछ सार्थक , विचारोत्तेजक चिंतन हुआ है इस बीच। लगभग सभी आलेख पढ़ डाले हैं और हमेशा की तरह सहमत हूं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-45476318483766535352007-10-30T04:31:00.000+00:002007-10-30T04:31:00.000+00:00दोगले चरित्र का सलीके से किया गया चित्रण। हो सकता ...दोगले चरित्र का सलीके से किया गया चित्रण। हो सकता है कुछ लोग मंदिरों में कुहनियां चलाना बंद कर दें।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-40767872755995794792007-10-27T12:47:00.000+01:002007-10-27T12:47:00.000+01:00बहुत सही कहा आपने !बहुत सही कहा आपने !Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-87289133366798857122007-10-25T14:53:00.001+01:002007-10-25T14:53:00.001+01:00कहीं रह गया था......देर से आया हूँ पर भरपूर आन्न्द...कहीं रह गया था......देर से आया हूँ पर भरपूर आन्न्द पाया हूँ....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-3295703758339613082007-10-25T14:53:00.000+01:002007-10-25T14:53:00.000+01:00कहीं रह गया था......देर से आया हूँ पर भरपूर आन्न्द...कहीं रह गया था......देर से आया हूँ पर भरपूर आन्न्द पाया हूँ....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-50958184009894090062007-10-24T01:59:00.000+01:002007-10-24T01:59:00.000+01:00आपके लेख के 'मच-अक्लेम्ड' उपसंहार से कुछ याद आ गया...आपके लेख के 'मच-अक्लेम्ड' उपसंहार से कुछ याद आ गया है. साल-दो साल पहले आई एक मराठी फ़िल्म 'अग बाई अरेच्या' के एक सीन के द्वारा,जिसके पार्श्व में देवी दुर्गा की मराठी आरती चल रही है, निर्देशक यही कहना चाहता है.यू-ट्यूब लिंक नीचे दे रहा हूँ;गौर फ़रमाएँ.<BR/><BR/>http://www.youtube.com/watch?v=BjSHNLztQEoAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-36314417954530210992007-10-21T04:23:00.000+01:002007-10-21T04:23:00.000+01:00बहुत दिनों बाद लिखा. बहुत खूब लिखा. बहुत लोगों को ...बहुत दिनों बाद लिखा. बहुत खूब लिखा. बहुत लोगों को सुलगाने वाला लिखा. लेकिन वो चुप क्यों हैं. इतने सारे लोग वाह वाह कर रहे हैं, लेकिन वो कहाँ गए जो माता के जागरण में बुक्का फाड़ गा रहे थे.Third Eyehttps://www.blogger.com/profile/15698316715337394391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-14101032482373335452007-10-20T05:14:00.000+01:002007-10-20T05:14:00.000+01:00कुदाली को कुदाली कहा....( calling a spade a spade ...कुदाली को कुदाली कहा....( calling a spade a spade :)) )<BR/><BR/>फिर भी....चोली के नये फैशन, लड़कियों की उकसाने वाली हरकतें, देर रात तक किसी भी जगह किसी के भी साथ जा सकने की स्वतंत्रता...क्या यह सब भी जिम्मेदार नहीं है ?!<BR/>डिस्को डाँडिया.... यह भी डिस्को का कल्चर भारत की संस्कृति में घुसने का प्रतीक है...<BR/><BR/>हाँ फिर भी<BR/>"जिस दिन पंडाल में बैठी प्रतिमा का नहीं, दफ़्तर में बैठी साँस लेती औरत का सच्चा सम्मान होगा, जिस दिन शेर पर बैठी दुर्गा को नहीं, साइकिल पर जा रही मोहल्ले की लड़की को भविष्य की गरिमामयी माँ के रूप में देखा जाएगा, उस दिन भारत में नवरात्र के उत्सव में भक्ति के अलावा सार्थकता भी रंग होगा"<BR/>से पूर्णतया सहमत हूँ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-31096260905213283542007-10-19T17:12:00.000+01:002007-10-19T17:12:00.000+01:00एकदम सटीक एवं सार्थक आलेख. आनन्द आ गया. बधाई.एकदम सटीक एवं सार्थक आलेख. आनन्द आ गया. बधाई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-13559128617269877292007-10-19T13:09:00.000+01:002007-10-19T13:09:00.000+01:00हमारे समाज की यही टू विशिष्टता है. हम हमेशा विरोधा...हमारे समाज की यही टू विशिष्टता है. हम हमेशा विरोधाभासों में जीते रहे हैं. जीते जी बाप की ऎसी-तैसी करते रहते हैं और मरने के बाद तमाम रस्में निभाते हैं. कबीर से लेकर आज तक हम-आप इसके खिलाफ काफी कुछ बकते आए हैं, फिर भी हिंदुस्तान जहाँ से चला था वहीं है. क्या होगा इसका?इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-22929380921015229172007-10-19T10:05:00.002+01:002007-10-19T10:05:00.002+01:00purush hokar aapki easi soch hai hairani hai. sabs...purush hokar aapki easi soch hai hairani hai. sabse mahatvpurn hoker bhi aurat ki kitni durdasha hai eske bare mein kuch bhi kehna bekaar hai. kher aapka rochak aur gyanverdhak lekh path ker kuch logon ki bhi soch badle to behtar hoga.<BR/>preetipreetihttps://www.blogger.com/profile/00308704597207988554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-4946037956383399832007-10-19T08:43:00.000+01:002007-10-19T08:43:00.000+01:00दशहरा और दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाए .आपने बि...दशहरा और दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाए .<BR/>आपने बिलकुल सही लिखा है.भारत में कुछ भी हो सकता है.हमारी संस्कृति जाने कितने ही विरोधाभासों से भरी है और सबसे मज़े की बात यह है कि लोगों को इन बातों से कोई फर्क नही पड़ता।.एक तरफ शाम ढलने के बाद पेड़-पौधों को छूना वर्जित माना जाता है कि कहीं उनकी नींद में खलल न पड़ न जाए.दूसरी ओर बलि प्रथा को महिमा मंडित किया जाता है। हमारे संस्कारों में रचे-बसे <BR/> यही विरोधाभास हमें दोहरे मानदंड अपनाने को प्रेरित करते हैं .tanivihttps://www.blogger.com/profile/08250762558079034162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-7093535383833999522007-10-19T08:32:00.000+01:002007-10-19T08:32:00.000+01:00अष्टमी के दिन आपकी ये पोस्ट पढ़ना कुछ सोचने को मजब...अष्टमी के दिन आपकी ये पोस्ट पढ़ना कुछ सोचने को मजबूर कर रहा है । आज सुबह से ही नहाई-धोई लाल टीका लगाई हुई बच्चियों को घर-घर जाते देख रही हूँ और सोच रही हूँ क्या सचमुच हमारा समाज कन्याओं का इतना ही सम्मान करता है? एक ओर देवी की उपासना, दूसरी ओर बाज़ार में नंगा करके खडा कर देना, इन दोनों के बीच एक इंसान के बतौर अभी तक भी कहाँ देख पा रहे हैं हम लड़कियों को . घर से निकलते ही सड़कों, बसों, दफ्तरों, बाजारों तक लगातार जिस तरह छीलती हुई नज़रों से सामना होता है, ज़रा से छू देने, कंधे टकराने, अश्लील हरकतें करने से लेकर चिकोटी काटने तक रोज़ ब रोज़ जिस तरह सिर्फ कन्या होने का इनाम पाती हैं लड़कियां, उससे कन्या पूजन की हमारी परम्परा कितनी गौरवान्वित होती है ! औरतों की सफलताओं के किस्से जब बढा-चढाकर सुनाये जाते हैं, कन्या पूजन की महान परम्पराओं का पालन पूरे धार्मिक भाव से किया जाता है, तब क्या हम इन तमाम विरोधाभासों को समझ पाते हैं !इन्दुhttps://www.blogger.com/profile/15370498837448588351noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-895227698671812662007-10-19T06:27:00.000+01:002007-10-19T06:27:00.000+01:00जिस दिन पंडाल में बैठी प्रतिमा का नहीं, दफ़्तर में...<B>जिस दिन पंडाल में बैठी प्रतिमा का नहीं, दफ़्तर में बैठी साँस लेती औरत का सच्चा सम्मान होगा, जिस दिन शेर पर बैठी दुर्गा को नहीं, साइकिल पर जा रही मोहल्ले की लड़की को भविष्य की गरिमामयी माँ के रूप में देखा जाएगा, उस दिन भारत में नवरात्र के उत्सव में भक्ति के अलावा सार्थकता भी रंग होगा.</B>सत्यवचन!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-16378846807168818922007-10-19T06:26:00.000+01:002007-10-19T06:26:00.000+01:00मगर साक्षात नारी के सामने आते ही प्रौढ़ देवीभक्त क...<B><I>मगर साक्षात नारी के सामने आते ही प्रौढ़ देवीभक्त की आँखें भी वहीं टिक जाएँगी जहाँ पैदा होते ही टिकी थीं.</I></B><BR/><BR/>:), एक कहावत है, या शायद मरफियाना नियम:<BR/><BR/>व्हाई मेन केननॉट मेक आई कॉन्टेक्ट्स विद वीमन? - बिकॉज ब्रेस्ट्स हैव नो आईज!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-25960939422642673592007-10-19T06:04:00.000+01:002007-10-19T06:04:00.000+01:00मारक,सटीक और सार्थक लेख.मारक,सटीक और सार्थक लेख.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-58295400751115533772007-10-19T04:42:00.000+01:002007-10-19T04:42:00.000+01:00बड़ी सार्थक बात कही है आपने। लेकिन ये महज नैतिकता ...बड़ी सार्थक बात कही है आपने। लेकिन ये महज नैतिकता का प्रश्न नहीं है। ऐसा है, इसके बजाय ऐसा क्यों है, अगर इस पर सोचा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा। जीवन स्थितियों के वो कौन से खड्ढे हैं जहां पुराने नाले का पानी आकर जमा हो जा रहा है, इसे तलाशने की जरूरत है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-47095988088613102292007-10-19T04:37:00.000+01:002007-10-19T04:37:00.000+01:00वाह भाई..बहुत सही ..दिल की बात कह दी आपने तो। आपकी...वाह भाई..बहुत सही ..दिल की बात कह दी आपने तो। आपकी बातों से अक्षरशः सहमत हूँ।<BR/>वैसे इस पोस्ट के इतर आपसे एक शिकायत है यहीं कह देते हैं आपने हमारी मेल का कोई जवाब नहीं दिया ?Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.com