tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post3125499656877472440..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: बिहार और बिहारी अच्छे लगने लगेंगे...अनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-73234987330255400342008-02-03T07:09:00.000+00:002008-02-03T07:09:00.000+00:00"बिहार की समस्या भी वैसे ही सुझलेगी और उतनी ही सुल..."बिहार की समस्या भी वैसे ही सुझलेगी और उतनी ही सुलझेगी जैसे भारत की सुलझ रही है....देखना काफ़ी दिलचस्प होगा, लेकिन यह होगा ज़रूर."<BR/><BR/>अगले पाँच -दस साल और देखिये, काफी कुछ बदल जायेगा। आज की तारीख में बिहार और उत्तर प्रदेश बहुत बडे "मार्केट" बन कर उभर रहे हैं..जहाँ पर्याप्त पात्रा में संसाधन मौजूद हैं और काम करने के लिये लोग मौजूद हैं...कई कंपनियां अपने पायलट प्रोजेक्ट्स बिहार से शुरू कर रही हैं, बस थोडा सा इंतजार और....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-62908678915955501962008-01-30T06:40:00.000+00:002008-01-30T06:40:00.000+00:00आप शायद सही कह रहे है।वैसे मुझे तो पहले से ही बिहा...आप शायद सही कह रहे है।<BR/><BR/>वैसे मुझे तो पहले से ही बिहारी पसंद है। <BR/>हिंदी में शायद कभी लिखती नहीं अगर मेरे दोस्तों में बिहारी नहीं होता।<BR/><BR/>मेरी एक राँची में जन्मी पढ़ी मलयाली दोस्त खुद को बिहारी कहलाना ज्यादा पसंद करती है।<BR/><BR/>सूरत में इन्टर्नशिप के दौरान सब भैया लोगों ने ही चिकित्सक होने का विश्वास दिलाया।<BR/><BR/>दीदी भाभी बुलाकर आम का अचार, अपनापन और बिल्कुल खालिस देसी अहसास का मजा भी इन्ही के साथ आया।<BR/>बाकी लोगों को भी देरसबेर पसंद आ ही जायेंगे।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-4282990630527264312008-01-30T06:07:00.000+00:002008-01-30T06:07:00.000+00:00वाह ! कॉर्पॉरेट नौकरियों के लिए बिहार नहीं जाना पड़...वाह ! कॉर्पॉरेट नौकरियों के लिए बिहार नहीं जाना पड़ रहा है , इसलिए बिहार जिन्दा है - वहाँ नन्दीग्राम नहीं होगा ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-39934694546868528322008-01-30T05:18:00.000+00:002008-01-30T05:18:00.000+00:00आपसे पूर्णतया सहमत हूं.. अगर आप मेरा ही उदाहरण लें...आपसे पूर्णतया सहमत हूं.. अगर आप मेरा ही उदाहरण लें तो आज से कुछेक साल पहले लोग मुझे बिहारी बुलाते थे पर आज जब मैं सक्षम हूं और किसी को भी मुंह तोड़ जवाब दे सकता हूं तो "आप बिहार से हैं" कहा जाता है..<BR/><BR/>वैसे आप बहुत इंतजार कराते हैं..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-67345702160036014172008-01-30T03:08:00.000+00:002008-01-30T03:08:00.000+00:00बिहारियों को लेकर यदा-कदा छिड़ जाती ये बहस लगता है...बिहारियों को लेकर यदा-कदा छिड़ जाती ये बहस लगता है, सर्वदा चलती रहेगी। लेकिन क्या बिहारीपन के नाम पर छिड़ी इस श्रेष्ठ भावना और हीन भावना की इस बहस से कुछ निकलेगा भी कभी? गर्व से गर्दन अकड़ ही गई तो क्या और शर्म से झुक ही गई तो क्या? कौन संपन्न बिहारी किसी ग़रीब बिहारी को सीधे बिहार के नाम पर अपने घर में मेहमान बनाकर पुआ तो दूर, ठेकुआ तक खिलाता है? और मान लें खिला ही दे तो उससे क्या भला, या बुरा हो जाएगा? मामला दरअसल अर्थहीन अहं-युद्ध का है. पर ध्रुवसत्य तो यही है कि दर्प उसी का भारी पड़ता है जिसके पास बल हो ,जिसके पास ना हो वो तो खिसियाकर खंभा नोचेंगे ही, वो चाहें बिहारी हों या पंजाबी या मराठी या अमरीकन या फ़्रेंच या ब्रितानी. वैसे क्षेत्रवाद-भाषावाद-जातिवाद-संप्रदायवाद सब धरे रह जाते हैं अगर कोई ज़रूरत के समय काम ना आए तो.मानववाद के साथ चाहे बिहारी दिल्ली में रहे, या देल्हाइट बिहार में, दोनों का निभ जाएगा. प्रेम से निभ जाएगा.बंगाली टोला हर छोटे-बड़े शहर में होता है कि नहीं? बहस अंतहीन है, मगर मनोरंजन और बौद्धिक जुगाली के लिए बेबात बहसियाने में कोई हर्ज़ नहीं.अब मज़ा तो आया ही भज्जी कांड में, भूँजा में हरिहर मरचाई और निम्बू का रस के तरह:)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-53304019163062055332008-01-30T01:15:00.000+00:002008-01-30T01:15:00.000+00:00भारत बिहार के बावजूद भी नहीं; बिहार के साथ विकास क...भारत बिहार के बावजूद भी नहीं; बिहार के साथ विकास करेगा।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-77165063281884357522008-01-29T23:17:00.000+00:002008-01-29T23:17:00.000+00:00भावुकता का संतुलन से रिश्ता थोड़ा विरल होता है मगर...भावुकता का संतुलन से रिश्ता थोड़ा विरल होता है मगर आपने दोनों को साध लिया। मगर अभी इसकी पड़ताल होनी बाकी है कि मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा बिहारियों से चिढ़ की नौबत क्यों आई। मैं बार बार यही पूछ रहा हूं कि नौबत क्यों आई। श्रमिक पक्ष तो बीच में कहीं है ही नहीं। उससे बिरले ही किसी को चिढ़ हो। आपकी पोस्ट भी इसका जवाब नहीं देती अलबत्ता बहुत मधुर ,और भावुक अंदाज़ में स्थिति को संभाल लेती है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-20649415620556969862008-01-29T20:49:00.000+00:002008-01-29T20:49:00.000+00:00जिय बाबू.. केतना अच्छा सुर साधे हैं! कहंवा से टिर...जिय बाबू.. केतना अच्छा सुर साधे हैं! कहंवा से टिरेनिंग पाये हैं? बीहार से?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com