tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post4298619399498347720..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तारअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-59631527382142440272008-12-21T15:42:00.000+00:002008-12-21T15:42:00.000+00:00दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार...की ना?!!...दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार...की ना?!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-5088231558846703172008-02-06T10:43:00.000+00:002008-02-06T10:43:00.000+00:00आपका ये ब्लॉग www.tehelkahindi.com पर भी पढ़ा...दु...आपका ये ब्लॉग www.tehelkahindi.com पर भी पढ़ा...दुबारा से उतना ही आनंद आया..Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-30068683900341224862008-02-02T12:40:00.000+00:002008-02-02T12:40:00.000+00:00अनामदास जी,ऐसा ऑब्ज़र्वेशन पेश किया आपने कि अभी मैं...अनामदास जी,ऐसा ऑब्ज़र्वेशन पेश किया आपने कि अभी मैं यही सोच रहा था कि हम भी कितने एकांगी हो गये हैं कि अपने आस पास ही बहुत सारी चीज़ें होती हैं जिससे हम बेज़ार रहते हैं..वाकई ब्लॉगजगत में इस तरह की नज़र कम लोगों में ही है....सोच कर ही मन आहत हो उठा.कैसा हो गया होगा वहां का समाज..किसी भी समाज में इस तरह की बात मैं तो कम से कम कल्पना भी नहीं कर सकता... शीर्षक पर बहस विजय बाबू को करने दीजिये, जो बात आप कहना चाहते हैं वो हम तक पहुँच रही है यही क्या कम है,VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-75051061494399072782008-02-01T21:22:00.000+00:002008-02-01T21:22:00.000+00:00@विजयशंकर जी (जवाब जिसे संबोधित हो उसके लिए @ का प...@विजयशंकर जी (जवाब जिसे संबोधित हो उसके लिए @ का प्रयोग हिंदी ब्लॉग में पहली बार मैंने ज्ञानदत्त पांडेय जी को करते देखा,इसका क्रेडिट कृपया मुझे न दें.)<BR/><BR/>चिंता न करें. आप सही कह रहे हैं, जहाँ तक संभव हो क्रेडिट दिया जाना चाहिए.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-76830897012209052892008-02-01T18:26:00.000+00:002008-02-01T18:26:00.000+00:00अनामदास जी, मेरा इरादा आपको आहत करने का हरगिज़ नही...अनामदास जी, मेरा इरादा आपको आहत करने का हरगिज़ नहीं था. शीर्षक लगाने में मैं भी आपका ही अनुज हूँ. करीब हज़ार शीर्षक तो लगाए ही होंगे.<BR/><BR/>दरअसल एक दिन निदा साहब से बात हो रही थी तो मैंने दुःख जताया कि आजकल टीवी चैनलों पर कई मशहूर शायरों की लाइनें इस तरह कोट की जाती हैं जैसे वे कोट करने वाले ने ही लिखी हों. इनमें फिल्मी-गैर फिल्मी हस्तियाँ तथा सिद्धू जैसे गाल बजाने वाले भी शामिल हैं जो अच्छे खासे शेर का वह कबाडा करते हैं कि मरहूम शायर भी कब्र में करवटें बदलने लगे. निदा साहब ने इस पर जो कहा वह यहाँ लिखने का कोई तुक नहीं है. बहरहाल...<BR/><BR/>मैं किसी भी रूप में दूसरे की चीज बिना उसे श्रेय दिए इस्तेमाल करने को उचित नहीं मानता. जब हम अखबारों या टीवी चैनलों में शीर्षक देते हैं तो वहाँ यह श्रेय देने की अक्सर गुंजाइश नहीं होती. लेकिन इस तरह की पोस्टों में इसका जिक्र आसानी से किया जा सकता है. जैसे कि उदाहरण के लिए यही कह दिया जाए कि निदा साहब का दोहा है- वगैरह...<BR/><BR/>लेकिन जैसा कि आपने ख़ुद कहा- 'शीर्षक हमेशा से ही किताबों, कहानियों, फ़िल्मों,कविताओं, मुहावरों से जुटाए जाते रहे हैं और उनका क्रेडिट देने का कोई चलन नहीं रहा है, लेकिन शायद अब ठीक कह रहे हैं ब्लॉगिंग माहौल ज़रा अलग है.'<BR/><BR/>अन्यथा न लीजियेगा. धन्यवाद!विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-17974803841718644072008-02-01T16:04:00.000+00:002008-02-01T16:04:00.000+00:00आपका लिखा पढ़ा । यह कैसी स्थिति रही होगी सोचकर ही क...आपका लिखा पढ़ा । यह कैसी स्थिति रही होगी सोचकर ही काँप गई । ८ वर्ष पहले बिटिया जब पहली बार अकेले यात्रा कर रही थी तो उसके पहुँचने की जब खबर ना आई तो बेहाल हो गई थी । कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । इन माँओं व टूटते बिखरते परिवारों, युद्धों में बार बार घायल, अपनों से बिछड़ते, उनकी खोज खबर न पाने वालों की सोचकर ही कहने को कोई शब्द नहीं मिल रहे ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-89499230670959200872008-02-01T13:48:00.000+00:002008-02-01T13:48:00.000+00:00एक छोटी-सी चिट्ठी पूरी दुनिया है . जो सुदूर गांवों...एक छोटी-सी चिट्ठी पूरी दुनिया है . जो सुदूर गांवों में रहे हैं -- ऐसे गांव जहां टेलीग्राम भी बोरे में आया करता था -- वे ही कुछ समझ पाएंगे पांच साल तक चिट्ठियां न छंटने-मिलने का दुख .<BR/><BR/>बेहद मर्मस्पर्शी पोस्ट .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-48606448335218173532008-02-01T08:36:00.000+00:002008-02-01T08:36:00.000+00:00प्यारे अनामदास जी, बहुत प्यारी सी , दिल को छूने वा...प्यारे अनामदास जी, बहुत प्यारी सी , दिल को छूने वाले अहसास के साथ आपने लिखी है चिट्ठी की बात । अच्छा लगा। <BR/>ये जो विजय भाई ने चुटकी ली है उसे भूल जाइये। आप कौनो ग़लती नाही किए हैं। हैडिंग लगाना हमारा भी धंधा है और शीर्षक तो शीर्षक है । उस पर श्रेय सिर्फ लगाने वाले को मिलता है। जिसे सूझ जाए। अलबत्ता मशहूर लाइनें तो दिमाग़ मे कौंधती ही इसलिए हैं कि संदर्भ से मेल खाती हैं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-55763326455641017422008-02-01T08:23:00.000+00:002008-02-01T08:23:00.000+00:00विजय जी, ध्यान दिलाने के लिए बहुत शुक्रिया. निदा फ...विजय जी, ध्यान दिलाने के लिए बहुत शुक्रिया. निदा फाज़ली का दोहा है.<BR/><BR/>मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार<BR/>दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार<BR/><BR/>वैसे गुस्ताख़ी माफ़, मैं शीर्षक लगाने के ही धंधे में काम करता रहा हूँ. शीर्षक हमेशा से ही किताबों, कहानियों, फ़िल्मों,कविताओं, मुहावरों से जुटाए जाते रहे हैं और उनका क्रेडिट देने का कोई चलन नहीं रहा है, लेकिन शायद अब ठीक कह रहे हैं ब्लॉगिंग माहौल ज़रा अलग है.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-16435237957009805482008-02-01T05:36:00.002+00:002008-02-01T05:36:00.002+00:00बँटी हुई सरहदों, ख़ूनी लड़ाइयों के बीच इंसान का इं...बँटी हुई सरहदों, ख़ूनी लड़ाइयों के बीच इंसान का इंसानियत से ही नहीं, इंसानों से भी रिश्ता टूट जाता है<BR/>exceelent observationAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-74430638604247395192008-02-01T04:10:00.000+00:002008-02-01T04:10:00.000+00:00बडी भावुक सी दिल को छू लेनेवाली मामूली मगर गहरी बा...बडी भावुक सी दिल को छू लेनेवाली मामूली मगर गहरी बात। कहने का अंदाज दिलचस्प है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-53890685805768568002008-02-01T03:20:00.000+00:002008-02-01T03:20:00.000+00:00भाई, लिखा तो बहुत प्यारा है आपने. लेकिन अगर शीर्षक...भाई, लिखा तो बहुत प्यारा है आपने. लेकिन अगर शीर्षक का श्रेय निदा फाज़ली को दे देते तो कई लोगों को यह भ्रम तो न होता कि यह आपकी ओरिजिनल लाइन है. ख़ैर, आजकल तो सब चलता है, है न?विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.com