tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post594217598292798347..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: परत-दर-परत, चक्कर-पर-चक्करअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-33223326589951305852007-07-11T11:03:00.000+01:002007-07-11T11:03:00.000+01:00वह भाई पियाज छीलने का आपका यह तरीका बढिया लगा. और ...वह भाई <BR/>पियाज छीलने का आपका यह तरीका बढिया लगा. और हाँ, वो जो आपने लट्टू की बात की है, उसकी जगह अब एक नई चीज आ चुकी है. बे-ब्लेड कहते हैं उसे. उसको लेकर जो भयंकर विज्ञापनबाजी हुई है और व्यावसायिक कैम्पेनिंग हुई है, उसकी भी अपनी परतें हैं. कभी हो सके तो उन्हें भी छीलने की कोशिश करें.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-52010126732275233202007-07-10T18:41:00.000+01:002007-07-10T18:41:00.000+01:00परतों के इन ताने-बानों की बहक अच्छी है.. ज्यादा ...परतों के इन ताने-बानों की बहक अच्छी है.. ज्यादा संभावना है कम ही लोग इसमें रस लें.. उम्मीद की जाये आपको ज़रूर मिला होगा. मैं तो लड़ियाकर यहां तो सोच गया कि क्यों न इसी लाइन पर ज़रा साफ़-सुथरे स्टाइल में ग्रैहम ग्रीन व हज़ारी बाबू को मिलाते हुए आप एक थ्रिलर लिख मारें.. !azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-84695560385997153032007-07-10T05:32:00.000+01:002007-07-10T05:32:00.000+01:00जीवनकाश जीवन एक रेखा होतीएक बिन्दू से दूसरे बिन्दू...जीवन<BR/><BR/>काश जीवन एक रेखा होती<BR/>एक बिन्दू से दूसरे बिन्दू तक<BR/>एक निश्चित दिशा होती<BR/>हर कदम कुछ आगे बढ़ते<BR/>कुछ दूरी हर दिन तय होती<BR/><BR/>पर हर पल यहाँ...<BR/>एक नयी दिशा....<BR/>गोल घूमती दुनिया...<BR/>प्रदक्षिना...<BR/>और परीक्रमा...<BR/><BR/>लट्टू की तरह....<BR/>अपनी दुरी में घूम...<BR/>आगे कभी पीछे...<BR/>गोल कक्षा में झूम..<BR/>सुन्न...... सुस्त...स्तब्ध....<BR/><BR/><BR/>गती..<BR/>संगती....<BR/>स्नेह ...समृद्घी...<BR/>एक भ्रम....<BR/><BR/><BR/>मौसम…<BR/>पहर….<BR/>बनते....बिगड़ते....<BR/>गाम...शहर...<BR/>एक क्रम....<BR/><BR/><BR/>कहाँ.....???<BR/>..आदित्य.....<BR/>..चैतन्य.....<BR/>.....परम.....????Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-7400287807507054342007-07-10T04:50:00.000+01:002007-07-10T04:50:00.000+01:00हमको तो चक्कर ही आ गया।पर बातें बड़ी गहरी है।हमको तो चक्कर ही आ गया।<BR/>पर बातें बड़ी गहरी है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-41500482323883033662007-07-10T04:02:00.000+01:002007-07-10T04:02:00.000+01:00एम.आई.बी के अंतिम हिस्से में इस विचार से मिलता जुल...एम.आई.बी के अंतिम हिस्से में इस विचार से मिलता जुलता दृश्य था जिसमें पृथ्वी पर से कैमरा ज़ूम आउट करता है और हमारी आकाशगंगा से होते हुए बाहर चलता ही जाता है। जान पड़ता है कि जो हमारे लिए विहंगम है, विराट है वो किसी और के लिए हैं महज़ कंचे।debashishhttps://www.blogger.com/profile/05581506338446555105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-82636125345654328532007-07-10T02:59:00.000+01:002007-07-10T02:59:00.000+01:00आपकी परतें तो चकरा देने वाली हैं. ये कहीं कोई परत ...आपकी परतें तो चकरा देने वाली हैं. ये कहीं कोई परत ही तो है जो आपको और प्रमोद जी के मन में इस तरह के सवाल उठा रही है.ऎसे सवाल और उनके जबाबों की हर किसी को नहीं होती.अधिकतर तो इस सवाल के अस्तित्व को ही नकार देंगें.नकार से सवाल बदलता नहीं बना रहता है.<BR/><BR/>बांकी फिर कभी...काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.com