tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post1017296082929943374..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: कथित न्यूज़ चैनल बॉलीवुड से कुछ सीखेंअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-27298178185814076622007-08-02T08:23:00.000+01:002007-08-02T08:23:00.000+01:00अनामदास जी, हफ्ते भर से कहां हो? यहां सावन बीता जा...अनामदास जी, हफ्ते भर से कहां हो? यहां सावन बीता जा रहा है,वहां गर्मी से परेशान अंग्रेजिनों की संगत में फंसकर सोने से ही फुरसत नहीं मिल रही आपको?चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-62610357475564515812007-07-31T07:53:00.000+01:002007-07-31T07:53:00.000+01:00आपने जो लिखा उससे उम्मीद की एक किरण तो दिखी है पर...आपने जो लिखा उससे उम्मीद की एक किरण तो दिखी है पर डिशटीवी और टाटा स्काई के उस हद तक प्रसार में अभी वक्त लगेगा।औऱ जबतक हम उस स्तर तक नही पहुंचते तबतक हमारे लिए नर्क है।जबरदस्त लिखा है......अगले आलेख का इंतजार रहेगा..................Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-67108102057167324832007-07-29T09:48:00.000+01:002007-07-29T09:48:00.000+01:00धन्यवाद, अजित भाई. मैंने जानबूझकर गरियाने में एनर्...धन्यवाद, अजित भाई. मैंने जानबूझकर गरियाने में एनर्जी ख़र्च करने के बदले बेहतरी की गुंजाइश देखने की कोशिश की है. कथित न्यूज़ चैनल को इतना गरियाया जा चुका है कि अब उनके लिए कोई नई और मौलिक गाली ढूँढना भी मुश्किल काम है.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-59095754038162816922007-07-28T21:53:00.000+01:002007-07-28T21:53:00.000+01:00बहुत खूब अनामदासजी। अच्छा-सटीक विश्लेषण। पर टीवी व...बहुत खूब अनामदासजी। अच्छा-सटीक विश्लेषण। पर टीवी वालों को बिना गरियाए छोड़ दिया। आजकल हरकोई इसका मौका छोड़ना नहीं चाहता। जायज़ भी है। गांव-देहात-शहर में जब से मदारी गायब हुआ है ये जिम्मेदारी न्यूज़चैनलों न संभाल ली है। डमरू बजा-बज़ा के दिन भर नाग-नागिन, बंदर-बंदरिया और न जाने क्या क्या दिखाते रहेंगे। कभी-कभी तो बड़ा ताज्जुब होता है कि इन खबरों को लिखने वाले, पढ़ने वाले और रचने वाले वही पत्रकार हैं जो हिन्दी प्रिंट माध्यम से गए थे ? अपन तो बच कर आ गए भैय्या।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-7818446542921337952007-07-28T16:09:00.000+01:002007-07-28T16:09:00.000+01:00अरे तो भाई! ये जो छोटा पर्दा है ये बडे परदे का छोट...अरे तो भाई! ये जो छोटा पर्दा है ये बडे परदे का छोटा भाई ही तो है न!<BR/>वैसे साढ़े और संतुलित विश्लेषण के लिए बधाई.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-21516111741779009182007-07-27T20:47:00.000+01:002007-07-27T20:47:00.000+01:00वर्तमान के साथ साथ भविष्य का भी बेहतरीन विश्लेषण। ...वर्तमान के साथ साथ भविष्य का भी बेहतरीन विश्लेषण। शुक्रियाउमाशंकर सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17580430696821338879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-4364546863282258802007-07-27T17:36:00.000+01:002007-07-27T17:36:00.000+01:00अनामदास जी ,आज दिल्लीविश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों ...अनामदास जी ,<BR/>आज दिल्लीविश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में जनसंचार जैसे विषयों को पढाते हुए सारी बातचीत को घूमफिरकर इन्हीं मुद्दों पर आना पडता है ! आज हमारे समाचार चैनल्स में बढता नाटकीकरण व्यावसायीकरण -एकता कपूरीय शैली को कॉपी करता है ! यहां जनसंचार से जुडे नैतिक पक्ष,सैद्दांतिक पक्ष की कॉलेज विद्यार्थियों के साथ चर्चा बहुत चुनौती का काम हो जाती है!इस मुद्दे को भी कभी उठाएं!<BR/>अच्छी विचारपूर्ण चर्चा !Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-19661257696214172402007-07-27T15:38:00.000+01:002007-07-27T15:38:00.000+01:00आज के टीवी कार्यक्रम अपने दर्शकों की समझ का सम्मान...आज के टीवी कार्यक्रम अपने दर्शकों की समझ का सम्मान नहीं करते अत: उन्हें सिर्फ़ मूर्ख ही देखेंगे! <BR/>इसका मतलब ये भी है की एक बडा दर्शकवर्ग मूर्ख है और जो जंक परोसा जा रहा है उसे चटखारे ले कर खा रहा है. <BR/>कुछ समझदार लोग ढेर सारे मूर्ख लोगों को कचरा परोस कर चांदी काट रहे हैं!eSwamihttps://www.blogger.com/profile/04980783743177314217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-40997510199968564272007-07-27T14:50:00.000+01:002007-07-27T14:50:00.000+01:00बहुत सही!!बहुत सही!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-50434044231827250882007-07-27T07:08:00.000+01:002007-07-27T07:08:00.000+01:00टी वी कौन और कब देखता है?1. उच्च वर्ग के लोग बहुत ...टी वी कौन और कब देखता है?<BR/>1. उच्च वर्ग के लोग बहुत कम देखते हैं। उनके नौकर चाकर देखते हैं। फिर सास बहु के कार्यक्रम बिल्कुल सही हैं।<BR/>2.मध्य वर्ग में सारे दिन घर बैठी गृहिणियाँ देखती हैं। उन्हे भी यह बाहर जाकर करी जाने वाली नुक्ताचीनी से बेहतर लगता है।<BR/>3. जिनके घर टी वी चैनल न्यूस चैनल पर ट्यून्ड होता है...उनके लिये वह बैकग्राउन्ड नाय्स से ज्यादा कुछ नहीं।<BR/>4.निम्न वर्ग के लोग दिन भर के काम के बाद कोई स्वप्निल दुनिया में जाना चाहते हैं। जिसके लिये आज कल की बालीवुड़ का रवैया सही है।<BR/><BR/>अब बात उन लोगों की जिनकी आप कर रहे हैं। भारत का यह हिस्सा बहुत समझदार हो चुका है। सही राय के लिये यह टी वी चैनल नही जाता।सोर्स से इनफौर्मेशन और कंप्यूटर पर तलाश।<BR/><BR/>अधिसंख्य देहाती, हिंदीभाषी और निर्धन लोग....हाँ इन्हे मुख्यदारा समझना चाहिये। शायद इनसे सही बात सही तरीके से कहने पर भारत के विकास को सही दिशा मिल सकती है। <BR/><BR/>किन्तु आमदनी इतनी आसानी से नहीं।<BR/><BR/>आगे और सोचने को मजबूर करता है आपका यह लेख।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-43630126761862254982007-07-27T03:43:00.000+01:002007-07-27T03:43:00.000+01:00अच्छा विश्लेषण किया है।अच्छा विश्लेषण किया है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-45029349568771708602007-07-26T17:26:00.000+01:002007-07-26T17:26:00.000+01:00आप तो उम्मीद जगा रहे हैं। सिनेमा और टीवी में एक ब...आप तो उम्मीद जगा रहे हैं। सिनेमा और टीवी में एक बडा अँतर है कि न्युज चैनल चलाने के लिये बहुत साधन चाहिए और दैनिक स्तर पर चाहिय़े। फिल्म बनाने की तरह नहीं है कि चार लोग मिले,पैसे जुटाये और फिल्म पुरी हो गयी। वैसे आपका विश्लेशण बहुत संतुलित है।Anonymousnoreply@blogger.com