tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post5065239468573222611..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: ब्रह्म और भ्रम के बीच झूलते हमअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-35003009245889485432009-10-21T17:16:06.929+01:002009-10-21T17:16:06.929+01:00आपका यह भ्रम बना रहे .. आमीन ।आपका यह भ्रम बना रहे .. आमीन ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-63745102359150480032007-08-20T07:00:00.000+01:002007-08-20T07:00:00.000+01:00भ्रम ही ब्रम्हा है।भ्रम ही ब्रम्हा है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-6222831165187450582007-03-14T13:23:00.000+00:002007-03-14T13:23:00.000+00:00लीला की भी एक अवधारणा है...वह परमपुरुष अपने विलास ...लीला की भी एक अवधारणा है...वह परमपुरुष अपने विलास के लिए माया की रचना करता है.. और खेल शुरु हो जाता है..वो भी एक दार्शनिक उलझाव है.. उसे भी परखिये कभी.. <BR/>खैर ..आप वमन कीजिये.. हम देख रहे हैं क्या क्या निकालते हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-53909233807861533752007-03-14T12:07:00.000+00:002007-03-14T12:07:00.000+00:00मैं भ्रमित हूँ क्योंकि मुझ जैसों को भरमाने में कोई...<B>मैं भ्रमित हूँ क्योंकि मुझ जैसों को भरमाने में कोई क़सर बाक़ी नहीं छोड़ी है शास्त्रों, शास्त्रियों और अनीश्वरवादियों ने भी. मौजूदा स्थिति ये है कि जब मुसीबत होती है तो भगवान याद आता है वर्ना उसके होने और न होने के तर्क दिमाग़ को मथते हैं. </B><BR/><BR/>सच है, ये लाइने दिल के आर-पार हो गयी। यूं तो मै भी ईश्वर मे कुछ खास विश्वास नही रखता, ना की किसी तरह की मूर्ति-पूजा और कर्मकांडों में। लेकिन मै प्रकृति को ही ईश्वर मानता हूँ।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-31480677903447452832007-03-13T23:30:00.000+00:002007-03-13T23:30:00.000+00:00मैं भी घोर आस्तिक हूँ, यद्यपि कर्मकांडी नहीं हूँ। ...मैं भी घोर आस्तिक हूँ, यद्यपि कर्मकांडी नहीं हूँ। मेरा भी अभिषेक की तरह मानना है कि सबको अपना रास्ता चुनने का हक होना चाहिए। अगर कोई नास्तिक है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं पर वह बंदा आस्तिकों के खिलाफ न हो।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-20630492412189558172007-03-13T18:13:00.000+00:002007-03-13T18:13:00.000+00:00वाह अनामदास जी,आते ही आपने अच्छी बात शुरु करी । ऐस...वाह अनामदास जी,<BR/>आते ही आपने अच्छी बात शुरु करी । ऐसे मै तो "घोर आस्तिक" हूँ लेकिन नास्तिकों का भी सम्मान करता हूँ । हर किसी को अपना रास्ता चुनने का हक़ होना ही चाहिये ।<BR/><BR/>ये बात सही रही आपकी...<BR/>"यानी ईश्वर प्रदत्त विवेक के हिसाब से कर्म हम करें, कई जन्मों तक उसके फल भी हम ही भोगें, वह हर जन्म में विवेक की वोल्टेज फ्लकच्युयेट करता रहे और उसकी पूजा भी जारी रहे. ये क्या बात हुई"<BR/><BR/>यँहा पर एक अवधारणा (कॉन्सेप्ट) आता है इच्छाशक्ति का भी जिसके बारे मे डिटेल मे नही लिख सकता अभी । ऐसे आपको स्वामी विवेकानन्द के विचार कैसे लगते हैं इस बारे मे । उन्हे भी अवश्य पढ़ना चाहिये ।Abhishekhttps://www.blogger.com/profile/05147031274147631687noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-6717086269664155022007-03-13T14:49:00.000+00:002007-03-13T14:49:00.000+00:00मंथन अच्छा है. लगे रहिये.मंथन अच्छा है. लगे रहिये.azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com