tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post6997177984055217282..comments2023-10-08T11:11:00.920+01:00Comments on अनामदास का चिट्ठा: मुड़ी-तुड़ी पर्चियाँ मन के कोनों में दबी हुईंअनामदासhttp://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-92181061333086974352008-08-23T15:15:00.000+01:002008-08-23T15:15:00.000+01:00जिंदगी घटने के साथ बढ़ता तो कचरा ही है। सहेज सको त...जिंदगी घटने के साथ बढ़ता तो कचरा ही है। सहेज सको तो अपनी जिंदगी कचरे के साथ सहेज लो।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-74698629950016813072008-08-21T17:11:00.000+01:002008-08-21T17:11:00.000+01:00लेकिन कितने लोग हैं जो मुझसे अलग हैं जिनके घर और म...लेकिन कितने लोग हैं जो मुझसे अलग हैं जिनके घर और मन में वही सब है जो सहेजने के लायक़ है.<BR/>सही कहा.संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-19647517174094292752008-08-20T07:19:00.000+01:002008-08-20T07:19:00.000+01:00आपकी इस रचना को पढकर सोच में डूबी हूं !अब तक क्या ...आपकी इस रचना को पढकर सोच में डूबी हूं !अब तक क्या किया जीवन क्या जिया ....Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-50527253499720220242008-08-15T13:36:00.000+01:002008-08-15T13:36:00.000+01:00आपने बिल्कुल सही जगह डाला हैआगे की चिन्ता तोदेखने-...आपने बिल्कुल सही जगह डाला है<BR/>आगे की चिन्ता तो<BR/>देखने-पढ़ने वालों कीयोगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-16036694479576694312008-08-11T20:21:00.000+01:002008-08-11T20:21:00.000+01:00दुष्यंत का शेर याद आ गया - बहुत संभाल कर रखी तो पा...दुष्यंत का शेर याद आ गया - <BR/><BR/>बहुत संभाल कर रखी तो पाएमाल हुई<BR/>सड़क पर फेंक दी तो जिंदगी निहाल हुई <BR/><BR/>मेरे जेहन पर जमाने का वो दबाव पड़ा <BR/>जो जिंदगी स्लेट थी वह सवाल हुई<BR/><BR/>-मेरे लिखने में शब्द बदल गए हों तो आश्चर्य नहीं।अनुराग अन्वेषीhttps://www.blogger.com/profile/09263885717504488554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-26621262901956704922008-08-09T22:33:00.000+01:002008-08-09T22:33:00.000+01:00जब गर्द- सर्द सपने, उम्र के दराजों को ज़्यादा भरने ...जब गर्द- सर्द सपने, उम्र के दराजों को ज़्यादा भरने लगने लगें, तो कहते हैं स्थान बदल लेने के मौसम शुरू हो जाते हैं - [ या गीता पाठ के ?? (:-)] - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-9317376348736240982008-08-09T14:51:00.000+01:002008-08-09T14:51:00.000+01:00ओ भाई । आपने अपनी मनोदशा लिखी है या हमारी । ये हमा...ओ भाई । आपने अपनी मनोदशा लिखी है या हमारी । ये हमारी पहले है और आपकी मनोदशा बाद में ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-36554988067229983112008-08-08T17:42:00.000+01:002008-08-08T17:42:00.000+01:00ग़नीमत है कि आपको सिर्फ सपने आते हैं. यहाँ तो हम प...ग़नीमत है कि आपको सिर्फ सपने आते हैं. यहाँ तो हम पूरे कचरे में इस कदर डूबे हैं कि कचरे का हिस्सा हो गये हैं...रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-9981782689474491552008-08-08T12:47:00.000+01:002008-08-08T12:47:00.000+01:00सही कहा आपने.पूरी जिंदगी ही कचरे में डूबी हुई है.सही कहा आपने.<BR/>पूरी जिंदगी ही कचरे में डूबी हुई है.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-74070509803050315212008-08-08T12:33:00.000+01:002008-08-08T12:33:00.000+01:00सच में, अपने आसपास, मस्तिष्क में भी, न जाने कितना ...सच में, अपने आसपास, मस्तिष्क में भी, न जाने कितना कचरा इकट्ठा कर रखा है। विभिन्न दिनों की तरह एक दिन कचरा मुक्ति दिवस के तौर पर मनाना होगा। परन्तु एक दिन क्या कम नहीं पड़ेगा? सप्ताह मनाना होगा।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-38240558780773949792008-08-08T12:16:00.000+01:002008-08-08T12:16:00.000+01:00आपके सपने दिन ब दिन इन्टर्स्टिंग होते जा रहे हैं.....आपके सपने दिन ब दिन इन्टर्स्टिंग होते जा रहे हैं...<BR/><BR/>पर अब बात उठाई है तो...कभी लगता है किसी इमेल एकाउंट की तरह सब डिलीट बटन से सँभव हो जाना चाहिए। फिर ट्रैश में...जो की तीस दिन के बाद ऑटोमैटिकली डिलीटड फॉर एवर। एक 'मूव टू इनबॉक्स' भी होना चाहिए कि कोई चीज़ डिलीट करने के बाद पसंद आये तो सहेजा जा सके।<BR/><BR/>वैसे देखा जाये तो रिसायकल और रियूस का ट्रैन्ड है.....फिर 'जंक' घर का हो या मन का...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-67591136558883358602008-08-08T07:11:00.000+01:002008-08-08T07:11:00.000+01:00जय सियाराम की! जी, होजुर, कचरा कुलशाली बोल रहा हूं...जय सियाराम की! जी, होजुर, कचरा कुलशाली बोल रहा हूं..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-44857363083519271652008-08-08T05:15:00.000+01:002008-08-08T05:15:00.000+01:00यही तो शोधन की प्रक्रिया है भाई। बचपन में भ्रम था ...यही तो शोधन की प्रक्रिया है भाई। बचपन में भ्रम था कि मैडम क्यूरी ने पहाड जित्ते कचरे से रेडियम निकाला था। ऐसी ही रेडियम की तलाश ज़रूरी है जो अंधेरे में भी चमकता रहे। अच्छा लिखा है, मंथन उत्तम है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-10880656016222358512008-08-08T04:20:00.000+01:002008-08-08T04:20:00.000+01:00Kavita-sa hai .Kavita-sa hai .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-25684347970630023572008-08-08T03:11:00.000+01:002008-08-08T03:11:00.000+01:00अनामदास जी, बी बी सी पे देखा था आफ्रीका के एक "अना...अनामदास जी,<BR/> बी बी सी पे देखा था <BR/>आफ्रीका के एक "अनाम से " क्षेत्र मेँ अमरीका से ढेरोँ discard हुए कम्प्युटर तथा अन्य आधुनिक उपकरणोँ का अँबार रोज ही दरिआई जहाजोँ मेँ भरकर टोक्सीक वेस्ट बनकर ,<BR/> उस क्षेत्रको बर्बाद कर रहा है - <BR/>बहुत सारे ऐसे ही कचरोँ को कहीँ ना कहीँ फेँक कर<BR/> भूलाया जा रहा है - <BR/>यही २१ वीँ सदी का सत्य है ! :(<BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6853758773001535028.post-31238484957931852402008-08-08T02:58:00.000+01:002008-08-08T02:58:00.000+01:00ब्लॉग पर जी ब्लॉग पर.. :)ब्लॉग पर जी ब्लॉग पर.. :)अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com