आभासी लोक में विचर रहे दो जीवों ( प्र1 प्र2) ने सवाल सामने रखा कि कोई यहाँ क्यों आया, क्या चाहता है. ठीक वैसे ही जैसे लोग पूछते हैं--'आपके जीवन का उद्देश्य क्या है?'
जवाब तो नहीं है, बस एक सवाल है, अरे भाई जब पैदा होने का उद्देश्य नहीं था, मरने का कोई उद्देश्य नहीं है तो वक़्फ़े का उद्देश्य क्यों होना चाहिए? अगर होगा तो वही जाने जिसने हमारी इच्छा के बिना हमें बनाया और हमारी इच्छा के बग़ैर मार डालेगा.
कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्हें उनके जीवन का उद्देश्य मिल गया है--देशसेवा, गौसेवा, जनसेवा, हिंदीसेवा से लेकर कारसेवा और अब नेटसेवा तक. मुझे कोई उद्देश्य नहीं मिला है, जिस तरह जीता हूँ उसे उद्देश्य कहने का हौसला मुझमें नहीं है.
मुझे जीवन का उद्देश्य तो नहीं पता लेकिन जिसे आभासी दुनिया कहा जाता है वहाँ मैंने स्वेच्छा से जन्म लिया. स्वयंभू हूँ, हर्मोफ़र्डाइट हूँ--एककोशीय जीव, जो ख़ुद से टूटकर बना है.
आभासी दुनिया का उल्टा क्या हो सकता है, सोचता रहा मगर कोई ठीक शब्द नहीं मिला-स्पर्शी दुनिया? जीवन इहलोक है तो आप जिसे आभासी दुनिया कह रहे हैं वह शायद उहलोक. आभासी दुनिया में उतरने का सादा सा लेकिन बहुत बड़ा सा आकर्षण है, इहलोक में रहते हुए उहलोक में विचरण करना.
मैं वह सब कुछ चाहता हूँ जो इहलोक में नहीं मिल पाया, इहलोक में नौकरी है तो उहलोक में आज़ादी, इहलोक में सीमाएँ हैं तो उहलोक में स्वच्छंदता. उहलोक में जीने का आनंद उठाने के लिए सबसे ज़रूरी था नाम, काम, दाम आदि का त्याग इसलिए अनामदास का चोला पहना और निकल लिए ऐसा जीवन जीने जिसकी सीमाएँ नहीं मालूम, इहलोक वाले बंदे की सब सीमाएँ समय रहते मालूम हो गईं इसलिए चाकरी खोजी और लग गए नून तेल लकड़ी में.
जो उहलोक वाला था हमेशा से कसमसाता था, एक और जीवन जीने के लिए. उसके लिए एक और जन्म तक इंतज़ार करना पड़ता और इस जन्म को इतने बोरिंग तरीक़े से गुज़ारना पड़ता कि अगले जन्म में भी मनुष्य बनना नसीब हो. तभी अचानक 'सेंकेड लाइफ़' जैसा आइडिया आया, हमने कहा जो कुछ तनख़्वाह देने वाले ने नहीं ख़रीदा है वह उहलोक वाले के नाम. अनामदास गरियाता है कि साले ने कुछ नहीं दिया, एक-सवा घंटा देता है हफ़्ते में एकाध बार एहसान करके...
क्या-क्या बिक गया है ठीक-ठीक नहीं पता, क्या-क्या बचा है, नहीं मालूम. शायद यही पता लगाने की कोशिश है आभासी दुनिया की मटरगश्ती. जब तक यही पता न हो कि खींसे में क्या है तब कैसे पता चलेगा कि झोले में क्या आएगा. आभासी दुनिया में कई जीव भटकते हैं अपनी तरह के, दूसरी तरह के भी, वही बता पाएँगे कि मेरे पास कुछ खरा है या बाउंस होने वाला चेक लिए घूम रहा हूँ.
बात ये है कि इहलोक में रहते हुए उहलोक की रेकी कर रहे हैं, देख रहे हैं कि अगर इधर से निकलकर उधर गए तो कोई आसन-पाटी मिलेगी या लतिया दिए जाएँगे.
हर आदमी के अंदर कई-कई जीव रहते हैं, अभी तक दो का सस्ता-मद्दा इंतज़ाम हो पाया है, बाक़ियों को टरका दिया गया है.
समानांतर जीवन जीने की इस युक्ति से मुझे सचमुच निर्मल आनंद मिल रहा है लेकिन कई लोग हैं जो लगातार धमकाते रहते हैं कि पोल खोल देंगे. जो भाई इहलोक वाले को किसी भी तरह से जानते हैं उनसे अनुरोध है कि उहलोक वाले के असमय अवसान के पाप का भागी न बनें.
उहलोक में क्योंकर विचरण हो रहा है यह बताने की कोशिश की है, आगे सोचकर बताता हूँ कि धूप-छाँव, शहर-गाँव, ध्वनि-प्रतिध्वनि, आलाप-विलाप-प्रलाप क्या सुनना चाहता हूँ, क्या सुनकर मन खुश होता है और क्यों... फूड फॉर थॉट के लिए आप दोनों का आभार...
20 जून, 2007
जो न हो सका उसकी तलाश है मुझे
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7 टिप्पणियां:
जो आपको धमकाते हैं उनको पता नहीं है कि उनकी भी पोल-पट्टी है जिसका उनको भी पता नहीं। आप मस्त रहिये!
चलिए, नेक्स्ट इन्सटॉलमेंट लाइए!.. जल्दी!
मेरे और मन के ख्याल मिलते नहीं
उलझते हैं अक्सर कौन है सही
मुझे तैरने का डर
इसे डूबने की आदत...
मुझे ठहरना पसन्द
उड़ना इसकी ताकत ...
मैं अहम को पहनाऊँ पोशाक
इसके नग्न जज़्बात...
मैं स्थिर समर्थ अस्तित्व
इसके क्षणभिंगुर हालात...
मैं समय के अनुसार
इसकी अलग बिसात...
इसके सब रास्ते नये
मैं नक्शे के साथ...
मुझे भूत से प्यार
यह भविष्य पर लगाये घात...
मुझे नींद से आराम
इसका सपनों से साथ...
माँ से शिकायत की थी
यह कैसी आफत
माँ कहती ....तेरा मन चंचल
सँभल जायेगा समय के साथ
...पर.....
मेरे और मन के ख्याल मिलते नहीं
उलझते हैं अक्सर कौन है सही!!
बेजी
बहुत सुंदर, अक्सर आप ऐसा करती हैं. दंग रह जाता हूँ, जो बातें कहने में लोगों के हज़ार शब्द खर्च होते हैं उन्हें आप इतनी कंजूसी से कह डालती हैं. कमाल है.
आगे के आलाप विलाप प्रलाप में दिलचस्पी रहेगी ।और टरके हुये जीवों को भी प्राणवायु देते रहिये बीच बीच में ।
उहलोक वाला बना रहे और देता रहे ऐसा तत्त्वज्ञान। इहलोक पर भी असरकारी होगा इहलोक का - यह अ-सरकारी आधार-बयान ।
कहने को बहुत है...और शब्द बहुत कम....उन्ही में कहने की कोशिश करती हूँ...कोई प्रोफेसर ने पीठ थपथपाई हो ऐसा लगता है....शुक्रिया!!
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