26 अगस्त, 2008

सावन सुहाना, भादो भद्दा, आख़िर क्यों?

सावन चला गया. पूरे महीने 'बरसन लागी सावन बूंदियाँ' से लेकर 'बदरा घिरे घिरे आए सवनवा में' जैसे बीसियों गीत मन में गूंजते रहे.

राखी के अगले दिन से भादो आ गया है, भादो भी बारिश का मौसम है लेकिन ऐसा कोई गीत याद नहीं आ रहा जिसमें भादो हो.

भादो के साथ भेदभाव क्यों?

क्या इसलिए कि भादो की बूंदें रिमझिम करके नहीं, भद भद करके बरसती हैं? या इसलिए कि वह सावन जैसा सुहाना नहीं बल्कि भादो जैसा भद्दा सुनाई देता है? या फिर इसलिए कि भादो का तुक कादो से मिलता है?

भादो के किसी गीत को याद करने की कोशिश में सिर्फ़ एक देहाती दोहा याद आया, जो गली से गुज़रते हाथी को छेड़ने के लिए हम बचपन में गाते थे- 'आम के लकड़ी कादो में, हथिया पादे भादो में.'

हाथी अपनी नैसर्गिक शारीरिक क्रिया का निष्-पादन सावन के सुहाने मौसम में रोके रखता था या नहीं, कोई जानकार महावत ही ऐसी गोपनीय बात बता सकता है. सावन में मोर के नाचने, दादुर-पपीहा के गाने के आख्यान तो मिलते हैं, हाथी या किसी दूसरे जंतु के घोर अनरोमांटिक काम करने का कोई उदाहरण नहीं मिलता.

हाथी को भी भादो ही मिला था.

सावन जैसे मौसमों का सवर्ण और भादो दलित है.

बारिश के दो महीनों में से एक इतना रूमानी और दूसरा इतना गलीज़ कैसे हो गया?

जेठ-बैसाख की गर्मी से उकताए लोग आषाढ़-सावन तक शायद अघा जाते हैं फिर उन्हें भादो कैसे भाए?

भादो मुझे बहुत पसंद है क्योंकि उसकी बूंदे बड़ी-बड़ी होती हैं, उसकी बारिश बोर नहीं करती, एक पल बरसी, अगले पल छँटी, अक्सर ऐसी जादुई बारिश दिखती है जो सड़क के इस तरफ़ हो रही होती है, दूसरी तरफ़ नहीं.

कभी भादो में हमारे आंगन के अमरूद पकते थे, रात भर कुएँ में टपकते थे. किसी ताल की तरह, बारिश की टिप-टिप के बीच सम पर कुएँ में गिरा अमरूद. टिप टिप टिप टिप टुप टुप टुप...गुड़ुप.

सावन की बारिश कई दिनों तक लगातार फिस्स-फिस्स करके बरसती है. न भादो की तरह जल्दी से बंद होने वाली, न आषाढ़ की तरह तुरंत प्यास बुझाने वाली.

मगर मेरी बात कौन मानेगा, मेरा मुक़ाबला भारत के कई सौ साल के अनेक महाकवियों से है. भादो को सावन पर भारी करने का कोई उपाय हो तो बताइए.

15 टिप्‍पणियां:

  1. वंचित से सहानुभूति। लेकिन इसी बहाने एकलेख भादों के समर्थन में लिखा गया।

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  2. भादों - सावन-भादों के रुप में सुना जाता है। मल्हारों और बारहमासी गीतों में भादों का वर्णन है।
    भादों अपनी घनघोर घटाओं और गहरी अंधेरी रातों के लिए जाना जाता है।
    वर्षा का आगमन जितना सुहाना है उतना ही इसका रह जाना। वरषा की तबाही भादों में ही दिखायी देती है, भादों राजा की गरजना ही विरहणी को डराती है। भादों की गर्मी और धूप हिरण को भी झुलसा देती है।

    भारतीय परम्पराओं के अनुसार भी सावन में स्त्रियाँ अपने पीहर में रहतीं है और दुलारी होती हैं, पूर्णमासी को विदा होकर पुनः ससुराल चली जातीं हैं। तो न तो नैहर याद आता है और न पियाकी!

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  3. क्या बतायें जी....हमें तो इतना फर्क भी अभी ही पता चला है...
    पर यह पढ़ने के बाद अपना लिखा याद आ रहा है

    बारिश में भीग सकता है मन
    आसमाँ से मिली नमी...
    उधार की बूंदों की तरह
    पँखुड़ियों में
    सहेजी जा सकती है....

    नमी सोखने के लिए
    जड़ों की जरूरत होती है....

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  4. बहुत खूब...
    उपेक्षित भादो के सच्चे सखा, हम भी हैं इस भदेस भाद्रपद के भाद्रमित्र ।
    अच्छी रही विवेचना....

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  5. इस साल इतनी कस के बारिश हुई है कि मन उकता गया है। अब तो कास फूलने को आये। यह मौसम तो जाये! :)

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  6. भैया.. भेद करैं वाले ने भादों का भाव भसकाय दिया..का किहिन जाइ

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  7. "भादो का तुक कादो से मिलता है?" क्या सही बात कही आपने ..चारो तरफ़ गुड गोबर चाहें ताल तलैया हो या पोखर

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  8. मज़ेदार लेख है, बेचारा भादो! बेचारा हाथी! भादो के लिए भावुकता के क्षण में आइए ना कुछ रचा जाए - 'आया सावन झूम के' - के स्थान पर - 'हाथी नाचा झूम के' - टाइप का कुछ, भादो के लिए कुछ भारी ही रचा जाए, ये ज़रूरी तो नहीं।

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  9. हमारे भोजपुरी अंचल में तो एक कहावत है- सावन से भादो दुबर? अर्थात सावन से भादो दुबला कैसे?

    कवि, गीतकार, साहित्‍यकार वैसे भी समर्थ के साहचर्य में ही अपना सामर्थ्‍य तलाशते हैं।

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  10. आपने भादों को प्रसन्न कर दिया उस पर लेख लिख कर...और हाथी को भी!

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  11. ekdam sahi likha hai aapne. vicharniy prashan uthaya hai. badhayi

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  12. भादो उपेक्षित है !
    अतिथि की तरह जो आतिथ्य की सीमा लाँघ चुका है ...
    गुजराती कहावत है एक
    जहाँ भादो माह मेँ उगी भीँडी वटवृक्ष से अपनी खुशी जाहीर करती है
    - लोक साहित्य मेँ कोई विषय अछूता नहीँ रहा ! -
    - लावण्या

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  13. कहा गया है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। भादो आते-आते बारिश की अति हो चुकी होती है। फिर किसे अच्छा लगेगा यह? ...इस महीने में लगभग सारा देश बाढ़ की विभीषिका से त्राहि-त्राहि कर रहा होता है। रोमाण्टिक होने को सोचें तो कैसे?

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  14. बहुत खूब! आपका तो गद्य भी किसी पद्य से कम नहीं है.

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