26 सितंबर, 2008

सतरंगे देश को ब्लैक एंड व्हाइट मत बनाइए

अनगिनत रंगो-बू का देश, अनेकता में एकता का देश, रंग-बिरंगे फूलों का गुलदस्ता, इंद्रधनुष की छटा बिखेरना वाला भारत अचानक ब्लैक एंड व्हाइट हो गया है.

तुलसी, सूर, तानसेन, कबीर, रसखान, खुसरो के देश में सिर्फ़ दो छंद, दो सुर, दो ही बातें...या तो ऐसा या फिर वैसा.

शिवरंजनी और मियाँ की मल्हार एक साथ नहीं सुने जा सकते, या तो इसकी बात कर लें या फिर उसकी.

डागर बंधुओं का ध्रुपद, हबीब पेंटर का 'कन्हैया का बालपन' और शंकर-शंभू का 'मन कुंतो मौला'...इन सबके लिए कोई जगह नहीं दिख रही है.

भारत को भारत बनाए रखने के लिए एक संघर्ष की ज़रूरत दिखने लगी है, भारत का अमरीका, ईरान या इसराइल होना कितना आसान हो गया है.

इस समय भारत दो ध्रुवों पर बसा दिख रहा है, आर्कटिक और अंटार्टिक की बर्फ़ पर जा पहुँचे लोगों से अनुरोध है कि वे छह ऋतुओं वाले देश में लौट आएँ. हेमंत, शरद, पावस...सबका आनंद लें.

भारत के अनूठेपन पर ही तो नाज़ है वरना लाख आईटी और नाइन परसेंट ग्रोथ की बात कर लें, असल में आप भी जानते हैकि ग़रीबी की कोढ़ में भ्रष्टाचार की खाज से ज्यादा अगर कुछ है तो बस पैंतीस करोड़ उपभोक्ता.

यह अनूठापन किसी एक रंग, किसी एक रूप, किसी एक रास्ते चलकर नहीं पाया जा सकता, जब सब साथ आते हैं तो पूरी दुनिया उसे मैजिकल इंडिया कहती है.

इस मैजिकल इंडिया में लाल क़िला है, जैन लाल मंदिर है, चिड़ियों का अस्पताल है, सीसगंज गुरुद्वारा है, घंटेवाला का सोहन हलवा है, क़रीम के कबाब हैं, चंदगीराम का अखाड़ा है, सुलेमान मालिशवाला है, वैद्यजी भी हैं और चाँदसी-यूनानी हक़ीम भी हैं, सबके लिए जगह है, दाँत के चीनी डॉक्टर के लिए भी...

दिल्ली, अहमदाबाद में और पहले भी कई शहरों में बम फटे हैं, इन बमों ने कई जानें ली हैं मगर पाँच हज़ार साल पुरानी सभ्यता के परखच्चे उड़ाने की ताक़त इन बमों में नहीं है.

डर लग रहा है. बम इस-उस चौराहे पर फटे थे, उन्हें रेडक्लिफ़ लाइन मत बनाइए.

जिन लोगों ने बम फोड़ा होगा उन्होंने ऐसी सफलता की कल्पना कभी न की होगी, उन्हें सफल बनाने के लिए आपने तो कुछ नहीं किया है न?

14 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम झन्नाटेदार लेकिन किसे बता रहे हो. स्ट्रीटिजिक पार्टनरशिप की बात करो पार्टनर. कौन सा नया मॉल खुला और गूची का नया झोला पर्याप्त महँगा है या नहीं या पिये कादें का नया प्रॉडक्ट कैसा है... बरिस्ता में लात्ते पीने (या खाने) लौंडे-लौंडिया आ रहे हैं या नहीं.

    ये सवाल हैं जो आज हमारे सामने मुँह बाए खड़े हैं... कहाँ का राग मल्हार और कहाँ का रसखान.

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  2. लेख का शीर्षक ही अपने में मुकम्मल है। बहुत अच्छा लिखा। सुन्दर!

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  3. बहुत अच्‍छी और ज़रूरी पोस्‍ट।

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  4. बहुत सही । इस मैजिकल इंडिया में हम बड़े हुए हैं, ये हमारे बचपन का इंडिया है । इसी इंडिया में हम शिशु मंदिर में कराग्रे वसते लक्ष्‍मी गाते थे और घर पर आकर कुरान की आयतें पढ़ते थे ।
    आओ हम और आप उस मैजिकल इंडिया को खोजें ।

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  5. इसे कहते हैं "सपनों में खो जाना…" अच्छा है देखते रहिये, लेकिन असल में ब्लैक एण्ड व्हाईट कौन बना रहा है, यही तो असली सवाल है जिससे सब दूर भागते हैं

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  6. जानदार-शानदार-बजनदार लेख है।

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  7. आप से पूरी तरह सहमत हूँ..काश यही सोच और लोगों की होती लेकिन अफ़सोस ऐसा नही है...

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  8. आपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबाद

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  9. भारत को भारत बनाए रखने के लिए एक संघर्ष की ज़रूरत दिखने लगी है, भारत का अमरीका, ईरान या इसराइल होना कितना आसान हो गया है.


    सही कहा आपने !!उन्हे सफ़ल करने मैने कुछ नही किया है !!आभार

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  10. अरे...इसके बाद...
    हमें लगा अवसाद में चले गए...

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  11. लगता हे हमारी तरह आपको भी कही चैन नहीं हे. औरो को चैन से सोते देख कर लगता हे की हम शारीरिक- मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हे वरन हर फ़िक्र को धुए में उडाते चले जाते. किसकी फ़िक्र किसका रोना, कभी तो लगता हे की पूरी समाजव्यवस्था सडी हुई हे. सर से पांव तक. यहाँ हमारी जगह नहीं हे.

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