01 मई, 2007

आपके शब्द बताते हैं आपकी हैसियत

आप उतने ही शब्द जानते हैं जितनी आपने दुनिया देखी है.

शब्द भंडार और अनुभव संसार बिल्कुल समानुपाती होते हैं.

अनुभव संसार का मतलब स्थूल अनुभव से नहीं है, इसमें वह सब शामिल है जो आपने पढ़ा-सुना-देखा-जाना है. अगर लिखते या बोलते समय शब्दों की कमी महसूस हो रही है तो इसके दो ही मतलब हैं--या तो अभी जीवन भरपूर नहीं जिया है या ग्राह्यता में कुछ कमी रह गई है.

शब्द और विचार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते, विचारों में जितनी विविधता जितनी जटिलता होगी उन्हें व्यक्त करने के लिए आपको उतने ही बहुविध शब्दों की ज़रूरत होगी. अगर जीवन में घूमने-फिरने-खाने-पीने-देखने-सुनने-लिखने-पढ़ने-अनुभवी लोगों से मिलने-जुलने के अनुभव कम हैं तो आपके पास शब्द भी कम होंगे.

डर लग रहा है कि ज्ञान बघारने का आरोप लगने ही वाला है लेकिन भाषा और ख़ास तौर पर शब्दों को लेकर मैं कुछ बावला-सा हूँ इसलिए अपने-आप को रोक नहीं पा रहा हूँ. बुरा मत मानिएगा और माफ़ कर दीजिएगा अगर आपको लगे कि मैं बड़बोला हो रहा हूँ.

गोड़ाई, निराई, रोपनी, दँवरी, अधबँटाई, पगहा, रेहड़, जोहड़...अगर आपको ये शब्द नहीं मालूम तो आपकी खेती-किसानी में कोई दिलचस्पी नहीं है. इन शब्दों को जानने के लिए किसान होना ज़रूरी नहीं है. खेत से आपकी थाली तक अनाज कैसे पहुँचता है इसमें रुचि होना बहुत सहज है, लेकिन सबकी रुचि नहीं होती.

करनी, साबल, खंती, गैंता, रंदा, बरमा जैसे शब्द अगर आपको नहीं मालूम इसका मतलब है कि आपके घर में मज़दूरों और बढ़ई ने कभी काम नहीं किया या फिर वे क्या करते हैं, क्यों करते हैं, कैसे करते हैं इसमें आपकी दिलचस्पी नहीं रही.

कील, कवच, अर्गला, मारण, मोहन, उच्चाटन, संपुट आप नहीं जानते इसका मतलब है कि आपके घर में देवी की विधिवत पूजा कभी नहीं हुई, अगर हुई तो आपको पता नहीं चला कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है.

जौजे, मौजे, खसरा, खतियान, वल्द, मुदई, नालिश, हाज़िर-नाज़िर, दाख़िल-ख़ारिज अगर आप नहीं जानते इसका मतलब यही है कि आपने ज़मीन न ख़रीदी है, न बेची है, न आपने कभी किसी गाँव-क़स्बे के ज़मीन के पट्टे को छुआ-पढ़ा-देखा है.

ब्लू लगून, ब्लैक रशियन, सेक्स ऑन द बीच, पर्पल रेन, लॉग आइलैंड आइस टी...अगर आपको ये फ़िल्मों के नाम लग रहे हैं तो इसका मतलब है कि कॉकटेल में आपकी कोई रुचि नहीं है. हैनिकेन, स्टेला आर्तुआ, बडवाइज़र, कार्लस्बर्ग, करोना...दुनिया की मशूहर बियरों के नाम हैं जिन्हें जानने के लिए शराबी होना ज़रूरी नहीं है.

उदाहरण हज़ारों हैं. दर्शन, कला, धर्म, अधायात्म, सिलाई,कढ़ाई,बुनाई,पेंटिंग, पाककला, युद्धकला, दस्तकारी, भवननिर्माण, व्यापार, उद्योग, पर्यटन, खेल-कूद, चिकित्सा, रसायन, इतिहास, पुरातत्व...जितने भी नाम आप गिन सकते हैं इन सबसे हमारे आम जीवन में शब्द आते हैं.

आपकी रुचि कितने विषयों में है, आप कितना जानने-समझने और पचाने की कुव्वत रखते हैं इसी पर निर्भर करता है कि आपका शब्द भंडार कितना बड़ा है.

इसका किसी एक भाषा से ताल्लुक़ नहीं है, कुल मिलाकर आप जितने शब्द जानते हैं इस दुनिया को आप उतना ही बेहतर जानते हैं.

मैं बहुत भाग्यवान हूँ कि भारत के एक क़स्बे में पैदा हूँ, महानगर में जवानी के शुरुआती वर्ष गुज़ारे और एक दशक से यूरोप में हूँ, एक बोली और दो भाषाएँ मोटे तौर पर ठीक-ठाक आती हैं, यह अपने-आप बेहतरीन संयोग है. लेकिन ज़्यादातर लोगों के साथ ऐसा नहीं होता मगर पढ़कर, देखकर, सुनकर बहुत कुछ जाना-समझा जा सकता है. एक दफ़ा सीधे बिहार के एक गाँव से आए एक व्यक्ति ने ब्रिटेन की भौगोलिक रूपरेखा के बारे में ऐसा ज्ञानवर्धन किया कि मैं और मेरे पैदाइशी ब्रितानी दोस्त सकते में आ गए.

कोई विरला और शायद खिसकी हुई खोपड़ी वाला ही आदमी होगा जिसे शब्दकोश के सारे शब्द याद होंगे, शब्दकोश लिखने वालों को भी शायद नहीं याद होते. न ही कोई शब्दकोश रटकर विद्वान बन सकता है.

लेकिन जब आप शब्दों की ताक़त, उनके मर्म, उनकी उत्पत्ति, उनकी विविधता, उनकी छाया, उनकी ध्वनि को समझना शुरू कर देंगे तो आपको खाने-पीने-पढ़ने-लिखने-जीने का मज़ा आने लगेगा.

पुर्तगाल और भारत के कई हिस्सों में आलू को बटाटा और अनानास को अनानास ही कहते हैं...ऐसी सिर्फ़ एक मामूली बात जानने के बाद आलू, अनानास, इतिहास, भूगोल, व्यापार, उपनिवेशवाद, भाषाशास्त्र सबकी परतें खुलने लगती हैं.

आप प्याज़ की एक परत उतारकर आँसू बहाने लगते हैं या छीलते चले जाना चाहते हैं यह आपके ऊपर है.

17 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की ताकत क्या कहिये. हालाँकि आपकी इस बात से कइयों, खासकर भाषाविज्ञानियों, को असहमति हो सकती है,
    कुल मिलाकर आप जितने शब्द जानते हैं इस दुनिया को आप उतना ही बेहतर जानते हैं.

    लेकिन इससे नहीं,
    लेकिन जब आप शब्दों की ताक़त, उनके मर्म, उनकी उत्पत्ति, उनकी विविधता, उनकी छाया, उनकी ध्वनि को समझना शुरू कर देंगे तो आपको खाने-पीने-पढ़ने-लिखने-जीने का मज़ा आने लगेगा.

    मज़ा, शुद्ध मज़ा.

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  2. बोले तो झकास!

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  3. आपकी रुचि कितने विषयों में है, आप कितना जानने-समझने और पचाने की कुव्वत रखते हैं इसी पर निर्भर करता है कि आपका शब्द भंडार कितना बड़ा है.

    सत्यवचन महाराज!

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  4. साधारण देसज शब्दों को आपने बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया।
    दस साल तक यूरोप में रह कर भी आपको यदि इन शब्दों से इतना प्यार है तो अपनी भाषा और देश के लिये आपकी भावना को समझा जा सकता है।
    आपके चिट्ठे पर जब भी आया बहुत ही अच्छा पढ़ने को मिला।

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  5. आपकी बात सटीक है। शब्‍दों को लेकर हमारी साकांक्षता कैसी है, रही है- से ही हमारा शब्‍द संसार बीघा दर बीघा बढ़ता है। लेकिन आप सोचिए, उन किरायेदारों के बच्‍चों के पास कैसे शब्‍द आएंगे, जिनकी अपनी कोई ज़मीन, कोई कस्‍बा, कोई शहर न हो। मकान मालिक को घर में कुछ नया बनवाना होता है, तो घर खाली करने के लिए कह देता है। इस तरह बढ़ई की भाषा से हम अनजान
    रहते हैं। मकान मालिक कहेगा- मछली नहीं खाना है, तो मछली बाज़ार के शोरगुल में छिपा संगीत और मछलियों की किस्‍मों से हमारा रिश्‍ता सिमटता
    जाएगा। इस तरह जो इस देश में किरायेदार होने के लिए अभिशप्‍त हैं, उन्‍हें अपनी भाषा को लेकर जो कुंठा है... और अगर वे कुंठाएं कुछ शब्‍दों
    में ही बाहर आती हैं, तो क्‍या हम उन्‍हें मूर्ख कहेंगे? यह प्रश्‍न सहज रूप से पूछ रहा हूं, क्‍योंकि मैं अभी एक साल पहले तक किरायेदार रहा हूं-
    बचपन से। और शब्‍दों के मामले में मेरा अज्ञान मुझे बार-बार शर्मसार करता है। मुझे रोशनी दिखाएं।

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  6. मजा आ गया कई पुराने शब्दो से फ़िर से मुलाकात कर
    अनाम दास जी ये जो नीचे लिखा है कि आप आलू-चना का स्वागत करते है पक्की बात है ना बताईये हमे भी कई दिन हो गये है पंगा लिये दिल नही लग रहा

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  7. अत्यन्त मनोहर लिखा है.
    पर शब्द तो बस अभिव्यक्ति का साधन भर हैं. अभिव्यक्ति तो बिना शब्दों के भी की जा सकती है.

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  8. वाह! बेहतरीन लेख। शब्द वाक़ई व्यक्तित्व की परतें खोल देते हैं।

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  9. शब्द तो ब्रह्म हैं.
    यदि आप हमसे कच्ची, अध्धी, पौवा, टिल्ली, सल्फी, फैनी, नारंगी, नेंटी, मस्साला, ठर्रा, मोहनी का नाम सुने तो पता चलेगा अपन कितने घाघ टुनकीखोर हैं. :)

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  10. बहुत प्रभावित करने वाला लेख. हर बात में दम है. बहुत बधाई.

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  11. अगर कभी किसी ने कोल्हू के बैल की तरह अहर्निश कोई आई.ए.एस नामक किसी टूटपुंजी सी परीक्षा की तैयारी लगभग 1-2 साल तक की हो तो वो आपके द्वारा बताये गये शब्दों से परीचित हो जाता है और ऐसे ही हजारो अनावश्यक शब्दों का स्वामी आसानी से बन जाता है.....

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  12. लेट कमेण्ट करने का घाटा यही है कि आपकी बात कोई और आपसे ज्यादा बढ़िया तरीके से कह चुका होत है. मैं v9y को फेथफुली डिट्टो करना चाहूंगा:

    "शब्दों की ताकत क्या कहिये. हालाँकि आपकी इस बात से कइयों, खासकर भाषाविज्ञानियों, को असहमति हो सकती है,
    कुल मिलाकर आप जितने शब्द जानते हैं इस दुनिया को आप उतना ही बेहतर जानते हैं.

    लेकिन इससे नहीं,
    लेकिन जब आप शब्दों की ताक़त, उनके मर्म, उनकी उत्पत्ति, उनकी विविधता, उनकी छाया, उनकी ध्वनि को समझना शुरू कर देंगे तो आपको खाने-पीने-पढ़ने-लिखने-जीने का मज़ा आने लगेगा."

    बधाई.

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  13. बढि़या, महाराज। लगे रहिये।

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  14. इन्द्रधनुष को देखा है?

    कितने रंग हैं? क्या नाम हैं इनके?

    क्या हर इन्सान जो इसे देखता है...इसकी खूबसूरती महसूस करता है...उसके बारे में जानता है...?

    कितने शब्द किस भाषा में जानते हैं यह रुचि, अनुभव, अद्ययन वगैरह का मापदंड हो सकता है....पर व्यक्तित्व का नहीं.....हैसियत का नहीं।

    विचार तो मनुष्य जीव की स्वाभाविक प्रवृति है....भाषा का कोई ज्ञान नहीं रखने वाले शिशु के पास भी विचार हैं....पर शब्द उनके पास नहीं हैं यह उन्हे व्यक्त करने का माध्यम मात्र हैं....

    शब्द तो फिर भी सीखे जा सकते हैं...पर विचार व्यक्तितव की पहचान है.....शब्दों की मोहताज नहीं...।
    शब्द अभिव्यक्ति की ज़रूरत है....अनुभूति की नहीं।

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  15. जी बेजी;
    मैं आप‌से स‌ह‌म‌त हूं. अनुभूति श‌ब्दों की मोह‌त‌ाज न‌हीं है

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  16. भाहूत अच्छा जानकारी कीय आ आपने
    आज कल हिंदी मे ब्लोग्गिंग करने के लिए एक अच्छा मौक़ा हे
    quillpad.in/hindi से हिंदी मे आसान से लिख सकते है

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