15 मार्च, 2007

प्रार्थना मत कर, मत कर

प्रार्थना मत कर, मत कर
मनुज पराजय के स्मारक हैं मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर

प्रार्थना मत कर, मत कर
हरिवंश राय बच्चन

ईश्वर के बारे में दो और चिढ़े हुए चिंतकों की उल्लेखनीय उक्तियाँ, इन दोनों महानुभावों के नाम मुझे याद नहीं, अगर आपको याद हों तो बताइएगा.
1. इंसान महान है, उसने पहले ईश्वर को बनाया फिर कहा ईश्वर ने इंसान को बनाया है.

2. ईश्वर ने यह दुनिया बनाई और ऐसी बनाई कि इंसान को मुँह दिखाने के लायक़ नहीं रहा इसीलिए छिपा-छिपा फिरता है.

बच्चन जी के लिए संभव रहा होगा प्रार्थना न करना, मेरे लिए नहीं है, जैसा पिछले ब्लॉग में लिखा है, दुख में सुमिरन करता हूँ, सुख में शास्त्रार्थ.

मेरा मन हमेशा सवाल पूछता है कि कलावती कन्या के प्रसाद न लेने पर नाव डुबो देने वाला भगवान पूजने योग्य है?(संदर्भः सत्यनारायणकथा) क्या लाखों लोगों को भूख-महामारी से मारने वाला भगवान पूजने के योग्य है? क्या दुनिया भर के करोड़ों बच्चों, औरतों ने ऐसा पाप किया है कि उन्हें ऐसा जीवन और ऐसी मौत देना परमपिता, परमदयालु, पालनहारा कहलाने वाले भगवान की मजबूरी है?

लेकिन भगवान शायद न सिर्फ़ अहंकारी है जो तुच्छ प्राणी की अनदेखी पर नाराज़ होकर उसे दंडित कर सकता है बल्कि वह स्वार्थी भी है, शायद इसीलिए दुनिया में इतना दुख-दर्द का इंतज़ाम किया है ताकि मेरे जैसे भ्रमित लोग भी उसे याद करते रहें. मगर जो बात समझ से परे है, वह ये कि भक्तों की और बुरी गत बनाता है भगवान. भगवान को न मानने वाले अधिकांश यूरोपियन मौज में हैं. अब वही पिटी हुई बात मत कहिएगा कि भक्तों की परीक्षा लेता है भगवान.

ईश्वर है या नहीं, उसका रूप क्या है, वह निराकार है, साकार है, एक है, अनेक है, सवाल तो सैकड़ों हैं, आत्मा-परमात्मा की गुत्थियाँ सुलझाने में बड़े-बड़े डूब गए लेकिन गधों को पूछते रहना चाहिए--कितना पानी?

अपनी राय ज़रूर लिखिएगा. अगला ब्लॉग कल...

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

हम तो यही कहेंगे


प्रार्थना मत कर, मत कर

योगेश समदर्शी ने कहा…

हां भाई हां भगवान है ! है!! है!!!

हर तरफ भगवान है,

देखना है तो गुरू धारण करना पडेगा.

जब डाक्टर बनने के लिये पढना पडता है

तो भगवान से मिलने के लिये भी पढना पडेगा.

जैसे डाकटरी की पढाई कई तरह की हैं
वैसे ही भगवान को जानने की पढाई भे भरी पडी है,

हिंदू की पाठशाला में पढलो
या पढ लो मदरसे में

गुरूग्रंथ साहिब मे पढ लो
या जा कर पढ लो बाईबिल

हर तरफ हर जगह तुम्हें भगवान पढा दिया जाएगा.
और केवल उनका ही असली है बता दिया जाएगा.

यदी तुमु मान गए उनकी बात
तो तुम खुद कहोगे कि हो गई भगवान से मुलाकात
और यदि तुम आपनी जिज्ञासाओं की पूर्ती का सामान चाहोगे
तो, मंदिर मसजिद गिरजा और गुरूद्वारो से नासतिक कह कर निकाल दिये जाओगे

इस लिये द्य्यान सही जगह लगावो
खुश रहो कमाऔ खाओ
यदि बाल बच्चों को खुश रख पाओगे
तो मिया हर जगह भगवान पाओगे.

योगेश समदर्शी
ysamdarshi@yahoomail.co.in

Srijan Shilpi ने कहा…

मेरी एक पिछली पोस्ट मौन: सत्य का द्वार कुछ-कुछ इसी जिज्ञासा का परिणाम थी। शायद आप भी पढ़ना चाहें।

बेनामी ने कहा…

तुलसीदास जी भी कह गये है

कर्महीन नर एक ही सहारा
दैव दैव आलसी पूकारा

Unknown ने कहा…

भगवान पर विश्वास करना चाहिये...क्यों कि अगर वह नहीं हैं तो कोई नहीं पर अगर हैं तो बुरा मान जायेंगे...