06 जून, 2011

बाबा ही बोल सकते हैं, सीईओ नहीं

बाबा से एलर्जी या सच्चे लोकतंत्र का आग्रह, आपके भीतर कौन सी भावना अधिक बलवती है?

अनेक बुद्धिजीवी बाबा को दुत्कारने को अपना पहला कर्तव्य मान बैठे हैं, बाबा के पास बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं है लेकिन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ऐसी मुहिम चलाने कोई और आगे क्यों नहीं आया, इस सवाल का जवाब भी उन्हें ख़ुद से पूछना चाहिए.

भारत की जनता हमेशा से संतों, भिक्षुओं, सूफ़ियों, दरवेशों की सुनती रही है. उनकी सहज बुद्धि कहती है, उसकी बात सुनो जो अपने नफ़ा-नुक़सान के फेर में नहीं है.

ऋषियों की बात बहुत पुरानी है. बुद्ध, शंकराचार्य, गांधी ही नहीं, बिनोबा, जयप्रकाश तक, अलग-अलग दौर में भारत की जनता ऐसे ही लोगों की सुनती रही है जो नेता नहीं, बल्कि संत दिखते हों.

या फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिनका राज चल रहा हो, शायद यहाँ भी यही सोच है कि व्यक्ति संयोगवश एक ख़ास ख़ानदान में पैदा हुआ है, अपने फ़ायदे के लिए (नीचे से ऊपर आने की कोशिश में) कुछ नहीं कह-कर रहा है.

अनेक बार धोखा खाने के बावजूद ज्यादातर मौक़ों पर सामूहिक-बुद्धिमत्ता (कलेक्टिव विज़डम) कारगर रही है, बाबा रामदेव के मामले में होगी या नहीं, कोई नहीं कह सकता.

बाबा मुझे शुरू से ही पसंद नहीं हैं, बाबा के ख़िलाफ़ ढेरों सवाल उठाए जा सकते हैं, किसके ख़िलाफ़ नहीं उठाए जा सकते, उठाने भी चाहिए, लोकतंत्र का यही तकाज़ा है.

महात्मा गांधी के नाम से जुड़ी सत्ताधारी पार्टी ने उन्हीं की तरह बिन-सिला कपड़ा पहनने वाले आदमी को रातोंरात जिस तरह अगवा किया उससे घबराहट, डर, सत्ता का मद, बेवकूफ़ी, अपरिपक्वता आदि-आदि का ही सबूत मिलता है.

भारत जैसे विविधता वाले देश में योग गुरू होने की वजह से बाबा रामदेव सरीखे लोग हमेशा शंका की नज़र से देखे जाएँगे. उनसे आरक्षण, पर्यावरण, भूमंडलीकरण, सांप्रदायिकता जैसे पेचीदा राजनीतिक मुद्दों पर विवादों से परे अकादमिक नज़रिया रखने की आशा करना भी फ़ालतू है.

विवादों से बचकर राजनीति करने की नटविद्या वे शायद आगे चलकर सीखें, या न भी सीख पाएँ, लेकिन इस समय वे जो कह रहे हैं उसमें ऐसा क्या है जो भारत का लगभग हर आदमी नहीं सुनना चाहता, वैसे भारत में अपवाद भी लाखों में होते हैं (जनसंख्या के अनुपात में).

फ़िलहाल मामला भ्रष्टाचार का है, कांग्रेस का प्रबल विश्वास है कि नौ प्रतिशत विकास दर की नाव जिस नदी में तैर रही है उसे कोई सूखने नहीं देना चाहता इसलिए बाबा रामदेव की बात पर लोग ज्यादा कान नहीं देंगे.

उन्हें ये भी साफ़ दिख रहा है कि भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की सदाक़त और बूता मुख्यधारा की किसी पार्टी में नहीं है, अगर बोलने के लिए लब आज़ाद होते तो घोटालों की फ़़ेहरिस्त से लैस विपक्ष मिमियाने से आगे ज़रूर कुछ करता.

इससे पहले जब भ्रष्टाचार राष्ट्रीय मुद्दा बना तो वीपी सिंह के नेतृत्व में ("राजा नहीं, फकीर है" का नारा याद करिए), जिन पर आजीवन भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा, लोगों को उनसे बाक़ी जो भी शिकायतें रही हों.

यही वजह है कि अन्ना हज़ारे, बाबा रामदेव जैसे लोग आगे आए हैं जो राजनीति के मौजूदा खाँचे में फिट नहीं होते, ग्लोबाइज़्ड दुनिया में खुद आर्थिक शक्ति बनने और इंडिया को बनाने की रेस में नहीं हैं.

बाबा रामदेव, अन्ना हज़ारे, मेधा पाटकर, अरुंधति रॉय, विनायक सेन, इरोम शर्मिला और हज़ारों गुमनाम-बेनाम-कमनाम लोग जो कह रहे हैं, उसमें अंतर हो सकता है, लेकिन एक बात समान है कि वे मौजूदा सत्ता, व्यवस्था, कार्यप्रणाली, संस्कृति, आचरण, नियम-क़ानून और संवेदनाओं पर सवाल उठा रहे हैं.

उनसे आप सहमत भी हो सकते हैं, असहमत भी, मगर अर्मत्य सेन से उधार लेकर कहूँ तो एक 'आर्ग्युमेंटेटिव इंडियन' होने के नाते आप कैसे उन्हें पुलिसिया डंडे से चुप कराए जाने को सहन कर सकते हैं.

बहुत ध्यान से सुनना चाहिए उनको जो आपके भले की बात कर रहे हों क्योंकि वही आपका बहुत बड़ा नुक़सान कर सकते हैं, बहुत ध्यान सुनना चाहिए उनको जिनकी बात रास नहीं आ रही हो क्योंकि वहीं कोई फ़ायदा छिपा हो सकता है.

बोलना और सुनना दोनों चाहिए कि उसके बिना लोकतंत्र नहीं चलता.

28 फ़रवरी, 2011

बियाह बिहार में

एलबम पार्ट वन

फोटो 1-- घर जगमग, हेलोजेन के लाइट, गाँछ पर लड़ी, चेहरों पर खुशी, साज सिंगार, जाड़ा में शिफॉन के साड़ी पर कत्थई कार्डिगन, लीला बुआ, अल्पना दीदी और चंपाकली छमक छल्लो

फोटो 2-- जिनगी के अरमान पूरा होए के खुशी से दमकत चेहरा, नारंगी साड़ी पियर सेनूर (मे बी अदर वे राउंड), भर-भर आँख काजर, केहुनी तक लहठी, गुलाबी टोकरी में चुनरी से ढाँकल पूजा के सामान, डेराइल दुल्हिन के पीछे खड़ा इस्माट भउजी

फोटो 3-- बुढ़िया नानी, टूटल चस्मा, दाँत में फाँक, मचकल मचिया, केयरिंग भतीज-पतोह, पिलेट में अकेला उदास लड्डू

फोटो 4-- लाल पियर पंडाल, दवाई वाला टुन्नू, नौकरी खोजे वाला लल्लन, गोपेसरा एन्ने काहे झांक रहा है...टोकरी ले जा रहा फगुनी, टेंट हाउस वाला जइसा बोला था, सोभ रहा है, डंडी न मारिस है...

फोटो 5-- तीन आदमी, ई कोट वाला, दिल्ली से आए हैं, फुलेसर जी के दमाद आईसीआईसीआई बैंक दिल्ली में हैं, दुसरका बुल्लु कमीज वाला आईएस का तय्यारी में है और कोना में नीलेश भइया हैं सीसीटीवी में हैं

फोटो 6-- राज दरबार टाइप का बनाया है, फूल कलकत्ता से लाया है, का जाने झूठ बोल रहा होगा लेकिन एकदम सेंट आ रहा था, दुल्हा-दुल्हिन का कुर्सी है, एके दिन का बात है लेकिन सबका अपना अरमान होता है, है कि नहीं?

फोटो 7-- खाना लग गया है, तरबूज्जा के सारस बनाया है अलबत्त, पिलेट काँच का नहीं है, "जगदंबा बाबू के बेटवा के बियाह में तो दस-बीस गो तो धोनही में टूट गया था, मेलामाइन है, टूटता नहीं है, टेंटहाउस वाला चालू है, एजी धक्का मत दीजिए, ढेर भुखाइल हैं तो आप ही जाइए पहिले...

फ़ोटो 8-- बरदी वाला बेटर लगइले हैं, अरे, इ तो रेकसा वाला फेकुआ के बेटा है, पिलेटवा लेके कहवाँ बइठे जी, बड़ा शहर में सब काम खड़े खड़े होता है का? , जब से इनका बेटवा बंबई गया है तब से रंग ढंग बदल गया है

फोटो 9-- एगो कट्टल बाल वाली है, तीन आदमी कनखी से देख रहा है, उसकी सहेली मुँह तोपके हँस रही है, दूर में दिल्ली जाने की तैयारी कर रहा लड़का है जो कनखी से नहीं, सीधे देख रहा है, वह इस फोटो में नहीं है

फोटो 10-- रात के शामियाना में काला चश्मा, लोकल रजनीकांत, पीला धारीवाली पैंट और नीला कोट, अंदर से झाँकती बैंगनी टी-शर्ट, हम किसी से कम नहीं वाली अदा, दबंग हिट होने के बाद आया नया कॉन्फिडेंस, दो-तीन लोकल फ़ैन भी

फोटो 11-- आटा चक्की वाला का बेटवा बीडियो कैमरा लेके आया था, रिकार्डिंग के लिए तो टुन्नुवा को कान्ट्रेक्ट देल्ले था पहिले से, अरे कैमरे देखाने लाया था, अरे नहीं, मुन्ना का दोस्त है इसलिए, पइसा बहुत है लेकिन देखाता नहीं है जादा....

फोटो 12-- मरकरी के नीचे बइठे थे, चेहरा साफ़ नहीं लउक रहा है, ढेर लाइट हो गया, दया मास्टर जी, कन्हाई चच्चा, शिवबचन जी और के जाने कउन है...

फोटो 13-- कोई बोला नहीं, रोसड़ा वाले फुफ्फा बियाहो के दिन बिना दाढ़ी बइनले घूम रहे हैं, जनमासा में तो फिरी का नउआ बइठल था ऐँ, इन्हीं को एतना ठंडा लग रहा था और कौन सकरात के बाद मफलर बाँध के घूमता है... दरोगा जी ओने का देख रहे हैं??

फोटो 14-- लाल टोपी वाला लइका शायद कंचनवा का है, पता नहीं कौन गोदी में लेले है, रील बरबाद करते हैं, केकर केकर फोटो खींच लिया है....

फोटो 15-- ले, दुल्हिन के फोटो के पता नहीं, खाना का डोंगा में कैमरा गोत के फोटो खींचा है, ई का है जी??, नवरतन कोरमा, ऐं? सलाद नहीं सैलेड कह रहा था कोई बरियाती...

फोटो 16-- पाँच आदमी खड़े हैं, एक तन के, एक भौंचक, एक उदास, एक सजग, एक उदासीन....

फोटो 17---पाँचों उँगली में अँगुठी पहिने बिधायकी के उम्मीदवार जी, चारों तरफ़ सूरजमुखी की तरह मुँह उठाए लोग, एक चश्मे पर चमका फ्लैश, "लगन के टाइम बहुत शादी अटेंड करनी पड़ती है" वाला भाव, गुलाबजामुन का दोना लिए कोई, "आप आए, हम धन्य हुए" वाली मुद्रा में...

फोटो 18-- गपुआ को देखिए जरा, जर रहा है, बियाह नहीं न हुआ अबहीं ले, हाँ, हर जगहे मनहूस मुँह बनाके खड़ा हो जाता है, ई पीला धारी वाला दुर्गा चचा के बेटा है, ई साल आईआईटी में नहीं हुआ, लेकिन डोनेशन वाला में सौथ इंडिया जाने वाला है...

फोटो 19-- भोला चाचा, रिटायर हो गए हैं लेकिन अफसरी रुआब अबइहों ले है, गंभीर आदमी हैं, पीछे तिनकौड़ी साहू, बड़ा बाबू, बुच्चन जी और उनके साढू जो लल्लन जी के मउसेरा भाई भी हैं...

फोटो 20-- शिवगंगा बैंड, माथे पर लैट उठाए औरतें, गुलाब से सजी गाड़ी, गले में गेंदे का हार पहने बराती, तनकर चलते मउसा जी, लाइट में हाइलाइट होता बीबीजे कोचिंग सेंटर का विज्ञापन

फोटो 21-- अरे, पाँच-छौ गो नाती-पोता के साथ आए थे फुलेसर महराज, नहीं सुधरेंगे, एकवायन रूपया असूल करने के चक्कर में होंगे, देखिए कुरसिए के नीचे कचरा बिग रहा है, कोई दोसरा के भी तो हो सकता है ऊ कचरा...

फोटो 22-- अपनी पम्मी कितनी सुंदर दिख रही है, अगर यही फोटो भेज दिया जाए तो तुरंत बियाह ठीक हो जाएगा, लल्लनवा पाकेट में हाथ रखके खड़ा है, लगता है बहुत पइसा है पाकिट में....

फोटो 23-- वही हम कहें, जैमाल वाला फोटो कहाँ गया, ई रहा, लैट कम है, चेहरा पर नहीं हैॉ, ठीक-ठीक है, नेचुरल है, दिख तो रहा है....

फोटो 24-- क्लोज अप, एक दम्मे रवीना टंडन टाइप, दुर. आपको कोई और नहीं मिला था...

कच्ची और विदाई वाला दूसरा एलबम में है, दुल्हा तो ई एलबम में हइये नई है...