23 जुलाई, 2009

आर्यभट मस्ट बी प्राउड

काल का पहिया 1510 साल में पूरा घूम गया. बिहार में जहाँ तरेगना है, वहाँ तारों को तरेगन कहते हैं. मिसाल- 'अइसा झापड़ मारेंगे कि दिन में तरेगन लउकने लगेगा'.

शून्य देने वाले वाले गणितज्ञ, दार्शनिक और खगोलशास्त्री आर्यभट ने जब तारों की गति को समझने के लिए इस डीह पर वेधशाला बनाई होगी तो लोगों ने तरेगना नाम रख दिया होगा, ऐसा मेरा अनुमान है.

आर्यभटिय और आर्यसिद्धांत की रचना करके 550 ईस्वी में आर्यभट दुनिया से चले गए और तरेगना की क़िस्मत के डूबे हुए तारे को दो दिन के लिेए उगने में पंद्रह सदियाँ लगीं.

कितनी जादुई बात है कि ग्रहण सबसे ज्यादा देर तक वहाँ रहा जहाँ से आर्यभट आसमान को देखते थे, मानो चांद-सूरज चाहते हों कि आर्यभट को पूरा अवसर मिले अध्ययन का.

तरेगना एक, ईस्वी 499


धोती बांधे, कंधे पर गमछा धरे आर्यभट जब कुसुमपुर से पैदल या बैलगाड़ी में बैठकर यहाँ पहुँचे होंगे तो लोगों की चिंता यही रही होगी इस साल पानी ठीक से बरसेगा या नहीं, पेड़ फलों से लदेंगे या नहीं. लोगों ने बीसेक साल के ब्राह्मण से अपना भविष्य जानना चाहा होगा, आर्यभट ने शायद यही कहा होगा, 'मैं ज्योतिषी नहीं, खगोल का अध्येता हूँ.'

गणित के बीजसूत्रों और आसमान फैले हुए तारों के रहस्य ढूँढने के लिए आर्यभट के साथी थे उसकी अपनी वर्णमाला के अक्षर, जिन्हें हम आज x+Y=? के रुप में पहचानते हैं, वे लिखते होंगे, क+ख=?. भोजपत्र, ताम्रपत्र और खड़िए से न जाने क्या-क्या लिखा-मिटाया होगा.

किसी ग्रहण से पहले जब लोग पुराणों के किस्से लेकर विप्रवर के पास पहुँचे होंगे तो आर्यभट ने मिट्टी की गेंदों को गोल घुमाकर समझाया होगा, 'सूरज और धरती के परिभ्रमण पथ के बीच चंद्रमा के आ जाने से उसकी छाया पड़ती है...'

गर्भवती महिलाओं पर इसका क्या असर होगा, क्या तुलसी का पत्ता डाल देने से खाना अशुद्ध होने से बच जाएगा, ग्रहण के बाद क्या-क्या दान करना चाहिए....इस तरह के सवालों का जवाब में आर्यभट ने बड़ी विनम्रता से संभवत यही कहा होगा कि 'यह मेरा विषय नहीं है'.

तरेगना दो, ईस्वी 2009


ओबी वैन, कैमरामैन, पत्रकार, एस्ट्रोनॉट्स, सिक्यूरिटी के साथ मिनिस्टर, फाइल लिए कलेक्टर, टूरिस्ट और चिरंतन सवालों की खदबदाहट मन में लिए जनता. अब सबको सब कुछ पता है. कोई अध्येता नहीं है, हर कोई जानकार है, आख़िर 1500 साल बीत चुके हैं.

भोजपत्र, ताम्रपत्र का ज़माना नहीं है, सेटेलाइट लिंक के ज़रिए लाइव ब्राडकास्ट हो रहा है, मिट्टी की गेंद घुमाकर समझाने की ज़रूरत नहीं है, टीवी चैनलों के पास अल्ट्रा मॉर्डन ग्राफ़िक सॉफ्टवेयर्स हैं.

गर्भवती महिलाओं पर क्या असर होगा, किस राशि के लोगों के लिए ग्रहण कितना अशुभ होगा, किस-किस मंत्र का जाप करना चाहिए ये सब वेदों-पुराणों के हवाले से लाइव बताया जा रहा है.

आर्यभट से कितना आगे निकल आए हैं हम, हमें अब सब पता है.

आर्यभट ने तो सिर्फ़ बीजगणित और खगोल को एक दूसरे से जोड़ा था, हमने वेद, विज्ञान, मिथक, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, दर्शन, ज्योतिष, अर्थशास्त्र सबको मथनी से घोंट दिया है और बनाया है अपना 'कल्चर' जिसके रहस्यों को आपने समझ ही लिया होगा अपने फ़ेवरिट चैनल की मदद से.