हिंदू शास्त्र यही कहते हैं कि आत्मा न पैदा होती है, न मरती है, वह उसी तरह शरीर बदलती है जैसे हम कपड़े बदलते हैं. जन्म और मृत्यु एक शाश्वत चक्र है जो चलता रहता है,इस चक्र के केंद्र में आत्मा है जो परमात्मा का अंश है.
हालाँकि ये बहस अब भी जारी है कि आत्मा नाम की कोई चीज़ होती है या नहीं,वैज्ञानिक तो कहते हैं कि आत्मा जैसी किसी चीज़ के अस्तित्व का कोई साक्ष्य नहीं है लेकिन वैज्ञानिक सिर्फ़ कुछ सौ वर्ष पहले तक नहीं जानते थे कि धरती गोल है और सूर्य के चारों ओर घूमती है. बहरहाल, हो सकता है कि वैज्ञानिक सही हों या फिर ग़लत हों.वैज्ञानिकों की बात रहने दीजिए लेकिन एक बात जो समझ में नहीं आई कि अगर आत्मा न पैदा होती है न मरती है तो दुनिया की आबादी कैसे बढ़ रही है? क्या भगवान के पास आत्माओं का स्टॉक है जो वह वक़्त ज़रूरत के हिसाब से रिलीज़ करता रहता है, क्या उसने तय किया है चीन और भारत के लिए सबसे अधिक आत्माएँ एलोकेट की जानी चाहिए?
बाबा लोग मुझसे ख़ासे परेशान रहते हैं, मेरा परिवार काफ़ी धार्मिक-अध्यात्मिक है इसलिए बाबाओं से अक्सर मिलना होता है. मैंने एक बाबाजी से यही सवाल पूछ लिया. वे चकराए ज़रूर, लेकिन पहुँचे हुए बाबा थे, बोले--"बच्चा, तुमने ये कैसे समझ लिया कि जन्म-पुनर्जन्म सिर्फ़ मनुष्य की परिधि में है, इसमें इस नश्वर जगत के सभी जीव आते हैं.अन्य जीव-जंतुओं की संख्या कम हो रही है और इसलिए मानव संख्या बढ़ रही है."
बाबा से अधिक बहस करने पर घर के बड़े लोग नाराज़ हो जाते हैं, बाबा ने समझा दिया तो समझ लो. लेकिन यह मूरख मन कहाँ मानता है. बाबा ने जो बताया उससे दो दिलचस्प निष्कर्ष निकलते हैं--एक तो ये कि जानवर बहुत तेज़ी से पुण्य कर्म कर रहे हैं जिसकी वजह से वे मनुष्य जैसी श्रेष्ठ योनि प्राप्त कर रहे हैं और दूसरे ये कि जो जीव लुप्त हो रहे हैं उनके बारे वन्य जीव कोष को अधिक चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे सब अपग्रेड होकर आदमी बन रहे हैं.
अब कोई ऐसी विधि सामने आनी चाहिए जिससे पता लग सके कि आपके भीतर डायनासोर या डोडो जैसे लु्प्त हो चुके किसी जीव की आत्मा तो नहीं है. अगर आप समझते हैं कि आपके भीतर किसी भी तरह की आत्मा है तो अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर लिखिएगा.
शेष अगले ब्लॉग में...
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