महीने भर की छुट्टी का महीनों से इंतज़ार था. बहुत सारे वादे-इरादे थे, अपनों से और अपने-आप से भी. दस साल से हर बार यही होता है, मंसूबे बनाए जाते हैं, कुछ पूरे होते हैं और ज्यादातर धरे रह जाते हैं.
भारत से जाते हुए हर बार अजब सी कसक होती है, ये सोचकर कि इसी तरह एक दिन दुनिया से चेक-आउट करने का वक़्त आ जाएगा और 'विशलिस्ट' में कई चीज़ों के आगे 'डन' नहीं लिख सकूँगा.
वक़्त की ही तो बात है न, थोड़ा ज़्यादा या कम. एक महीना या एक जीवन. मुझे पता है कि काफ़ी कुछ रह जाएगा, जो कुछ पूरा होगा उसे गिनने कब बैठूँगा. जो रह जाएगा, वही सताएगा.
बड़े-बड़े काम तो हो जाते हैं, करने ही पड़ते हैं. छोटे-छोटे रह जाते हैं जो चैन की नींद के बीच अचानक चुभ जाते हैं.
भोपाल जाकर रम पीने का वादा, किसी के लिए एमपी3 प्लेयर ख़रीदने का इरादा, अम्मा के दाँतों का इलाज...पुरानी दिल्ली के कबाब...एनएसडी में नाटक..पुराना ऑफ़िस, मुंबई-चेन्नई...आई टेस्ट...सब रह गए. बीसियों ऐसी मुलाक़ातें जो नहीं हो सकीं.
ढेर सारी माफ़ियाँ जो फ़ोन पर माँगी गईं, वहाँ भी और यहाँ से भी. तरह-तरह के शिकवे-गिले सुने, कुछ झूठे-कुछ सच्चे. सच्चा वाला--'आपकी राह देखते रहे, आप आए नहीं.' झूठा वाला--'भारत आकर एक फ़ोन तक नहीं किया.'
सारी यात्राएँ ख़त्म हो जाती हैं, इब्न बतूता-मार्को पोलो-कोलंबस-कैप्टन कुक जैसों की यात्राएँ समाप्त हो गईं. पता नहीं उन्हें कितनी बातों का अफ़सोस रह गया होगा, लंबी यात्रा में अधूरी आकांक्षाओं की सूची भी तो लंबी होती होगी. पता नहीं, मेरी यात्रा कितनी लंबी होगी, कितना कुछ पाकर पीछे छोड़ दूँगा, कितना कुछ अधूरा रह जाएगा.
लंदन-दिल्ली-लंदन की 14वीं यात्रा पूरी हुई, बुरी नहीं थी, ज़्यादातर मामलों में बेहतरीन थी. डिब्बाबंद रसगुल्ले, हल्दीराम के नमकीन, ढेर सारी किताबें, सैकड़ों हँसती-मुस्कुराती डिजिटल तस्वीरें, जीवन में हरियाली भर देने वाले केरल के अनुभव, आठ-दस किताबें, नए-नए कपड़े, सीडी-वीसीडी-डीवीडी...सर्दी में अपनत्व की सेंक से भरे दिन, कुछ दोस्तों से मुलाक़ात के सुखद क्षण साथ आए हैं.
जो छूट गए हैं उनसे फिर मिलने का वादा. ढेर सारे नाम हैं जिनसे मिलने के बाद उनके नाम के आगे सही का निशान लगाना है, उसके लिए फिर आना होगा, अतृप्त आत्माएँ दोबारा यूँ ही जन्म लेने की तकलीफ़ नहीं उठातीं.
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16 टिप्पणियां:
चलो मिले नहीं कोई बात नहीं.. कम से लिखा तो सही.. कितने दिनों बाद..
शिकायतें तो हम भी करते, पर आपका पढ़कर भावुक हो गये हैं । चलिए छोडि़ए । वो कहते हैं ना--
मैं एक लम्हे में सदियां देखता हूं
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है ।
हम उस लम्हे का इंतज़ार करेंगे भाई
सुंदर यात्रा-वर्णन। अच्छा लिखते हैं आप।
यह है नया साल शुरू करने का तरीका? ऐसे? हमारे साथ उतारी फ़ोटो की सजावट ही साट दिये होते?
"जो छूट गए "की श्रेणी में हम भी आते हैं और शिकवा भी हमारा सच्चा वाला ही था !:)
ऐसा तो अक्सर हरा किसी के साथ होता है.. आपके साथ लंदन से भारत आ कर हुआ, हमारे साथ चेन्नई से बिहार जाकर होता है..
वैसे अगली बार जब आयें तो मिलने वालों में मेरा नाम भी जोड़ लें..
:)
बहुत दिन बाद आपने लिखा. अच्छा लगा. इसी तरह यादों के साथ गलबहियां कीजिए. अच्छा लगता है पढ़कर....
एक दिन बिक जाएगा मॉटी को मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल। हम सब एक दिन चेक आउट कर जाएंगे और हज़ारों छोटी-बड़ी ख्वाहिशें यूं ही धरी रह जाएंगी। अक्सर सूकून पाने आपके चिट्ठे तक आता था। अंदाज ही नहीं था कि आप हमारे आस-पास ही आए हुए हैं।
सभी प्रवासियों की एक जैसी कहानी है भई। हम भी उसी नाव पर सवार है हजूर। हर बार ऐसा ही होता है। जब भारत के लिए निकलते है तो लिस्ट साथ होती है, भारत पहुँचते हुए, लिस्ट एक किनारे रख देते है, सोचते है, अभी तो आएं है, बैठे है, होश संभाला है, जल्दी क्या है।
थोड़े दिनो मे आलस हावी हो जाती है, फिर प्राथमिकता वाले काम तो शायद हो ही जाते है, फिर बाकी बचे समय और कामों का अनुपात निकाला जाता है। दूरिया और उपलब्ध समय को नापा जाता है, फिर कुल मिलाकर यही लब्बोलबाब होता है, कि बाकी बचे काम अगले विजिट मे पूरे किए जाएंगे नतीजा.....फोन पर दोस्तों की झाड़, माफीयां...और आपका ये लेख...है ना?
अनामदासजी
वैसे तो आप हमेशा अच्छा लिखते हैं लेकिन इस बार की बात अलग है। यह मानो मेरी कहानी है, कितनी छोटी छोटी बातें जीवन में अधूरी रह जाती हैं। लिखते रहें आपको पढ़ना आनंद देता है।
मनोज प्रधान
आप जहां भी रहें, ऐसे ही रहें। सुखी रहें ये हमारा आशीर्वाद भी है , शुभकामनाएं भी।
आज प्रमोदजी से फोन पर बतियाए खूब....कुछ कुछ ऐसी बातें भी हुईं जो आपने लिखी हैं। सुन रहे है अभयजी, यूनुसजी, अनिता जी.....हमें डर वर कुछ नहीं लगा। खुशगवार अहसास...
हे अनामधारी नामवर, जल्दी ही आपकी इच्छा पूरी होगी।
जीवन डिजिटल फोटो के फ्रोज़ेन मोमेंट्स का कोलाज भर क्यों रह जाता है ? सारी इच्छायें इसी जन्म में पूरी कर लें । अगले जन्म का क्या भरोसा ?
वाह...सबकी व्यथा, सबकी कथा...कुछ उम्मीदों में गुज़री ज़िंदगी, कुछ उम्मीदों में गुज़र जाएगी (साभारः एक शायर का शेर)
आपके चिट्ठे पर फ़िलहाल ही आना शुरू हुआ है जिसके लिए मैं माफ़ी चाहती हूँ.आपका लिखा बहुत अच्छा लगा.
पिछले दिनों में कई बार इस दर पर दस्तक दी थी। पर आज अच्छा लगा, एक नयी पोस्ट पाकर।
आपसे मिलने का हमारा इंतज़ार कुछ और लंबा हो गया है। कोई बात नहीं। अगली बार भारत आने पर छोटे-छोटे काम ही पहले निबटाने की कोशिश कीजिएगा।
फिलहाल तो गुजारिश है कि इस चिट्ठे पर हर हफ्ते पढ़ने को कुछ नया मिलता रहे, हमारे इंतज़ार का वक्त सहजता से कट जाएगा।
हमहूं रह गेली मुक्कालात से। खैर, अबरी आव तो होई।
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