16 अप्रैल, 2007

जात-पात ख़त्म,सांप्रदायिकता ख़त्म होने को है

उत्तर प्रदेश में जात-पात की राजनीति ख़त्म हो चुकी है. बहुजन समाज पार्टी ने जब से सतीश मिश्र जी (पता नहीं सरजूपारी हैं या कानकुबुज) को प्रवक्ता बनाया तब से मेरा विश्वास पक्का हो गया कि संपूर्ण क्रांति अब जाकर संपूर्ण हुई है. काश यह सुखद समय देखने के लिए 'जाति तोड़ो' वाले जेपी जीवित होते!!

अन्य पिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने वाली पार्टी ने पहले सभी पिछड़ों का दुख दूर किया और उसके बाद बेचारे ठाकुर कुल के राजा भैया की फ़रियाद भी सुनी.

दलितों की पार्टी के प्रवक्ता मिश्र जी हैं, दूसरी ओर 'अन्य पिछड़ों' के कर्ताधर्ता वही हैं जो सूर्यवंशम वाले अमिताभ जी के घर के कार्य-प्रयोजन की देखरेख भी करते हैं, जाति से ठाकुर हैं लेकिन सामाजिक न्याय के मामले में लोहिया जी के शिष्य रहे मुलायम जी के गुरू हैं.

निराला जी के चतुरी चमार को गाँधी जी अच्छे लगते थे क्योंकि वे उसे हरि का जन कहते थे लेकिन मान्यवर ने उसके बेटे को बताया कि गाँधी बरगलाता था, तुझे ये लोग दलते हैं, तू दलित है, वह बेचारा झंडा लेकर निकल पड़ा, उसे लगा वह जैसे सचमुच हाथी पर सवार हो गया है.

उसके भाई-बंद को कभी टिकट नहीं मिला था, मान्यवर ने मुसलमानों को टिकट का ज़्यादा हक़दार पाया, दलितों ने सोचा हम न सही, मुसले ही मूसल लेकर पंडितों के सीने पर मूंग दलें, दले जाने का कुछ तो बदला सधे, डंपी हो या डंगरमल क्या फ़र्क़ पड़ता है.

कु.बहन.सु.एड जी आईं तो उन्हें दिखा कि अगर पंडितों को साथ कर लिया तो हर साल अंबेडकर पार्क में धूम-धाम से नीले रंग का केक काटा जा सकता है. पूरे राज्य के पार्कों में बच्चों को अंबेडकर जी अपनी तर्जनी से इशारा करके हाथी दिखा सकते हैं.

चतुरी का बेटा फिर देखता रह गया. मिसिर जी परबकता हो गए, पुश्तों से जिनके जूते सीता था उन्हें मारने के लिए बड़े अरमान से 'जूते चार' रखे थे लेकिन ये क्या हो गया, जो बहन जी कान में फुसफुसाता हो उसे जूता कैसे मारा जाए?

जादो, कुर्मी, कोइरी सब मान रहे थे कि मोलायम जी के राज में उन्हें ब्राह्मणों-ठाकुरों आदि से कोई ख़तरा नहीं, वे अब पूरी तरह संतुष्ट हैं कि सारे ठाकुर मुलायम हो गए हैं क्योंकि मुलायम जी ठाकुर अमर सिंह की बात नहीं टालते.

अब आप अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए कि उत्तर प्रदेश में जात-पात की राजनीति कहाँ है? तिलक, तराजू और तलवार ही नहीं, लबनी, खुरपी और चाक सब खुश हैं और घुलमिल रहे हैं, एक-दूसरे की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.

अब देखिए ये सब वही पार्टियाँ हैं जिन पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगता था, अब सांप्रदायिकता की राजनीति करने का आरोप झेलने वाली भाजपा इससे कुछ तो सबक़ सीखेगी.

रज्जू भइया गए, लखनऊ वाले रज्जू भैया (राजनाथ सिंह) आजकल अशोक रोड पर विराजमान हैं, उनमें दूरदृष्टि की कमी नहीं है, वे भी शाहनवाज़ हुसैन और मुख़्तार अब्बास नक़वी से आगे देखेंगे. दस परसेंट सवर्ण और बारह परसेंट मुसलमान आ गए तो सांप्रदायिकता अपने आप दूर हो जाएगी. मंदिर बाद में बनवा लेंगे ऐसी क्या हड़बड़ी है.

इस बार न सही, अगले विधानसभा चुनाव तक इसी तरह सांप्रदायिकता भी ख़त्म हो सकती है, सीडी बनवाने का खर्चा भी बचेगा. हर मस्जिद के वज़ूख़ाने में कमल खिलेगा.

3 टिप्‍पणियां:

अभय तिवारी ने कहा…

मंद मंद मुस्कान के साथ पढ़ा गया.. शायद ऐसे ही लिखा भी गया होगा..आनन्द है..

बेनामी ने कहा…

आपके मुँह में घी शक्कर ! यह जातिवाद खत्म हो तो फिर विकास के बारे में सोचा जा सकेगा ।
घुघूती बासूती

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

लेओ, हम समझत रहे कि मायावतियै चंट हैं. पर इहां भी मामिला सरजुब्ज (सरजूपारी+कान्यकुब्ज) क हि निकिला.
खैर, अब्ब त ट्रेलर बा. आगे देख्य का निकरे चुनावी बक्सा में से. बाद में चार जूता मराये कि नाहीं. ठकुरवन क तरवार मक्खन क होइ जाये? अउर 51 करोड़ क अउर केतना फतवा जारी होइहीं?
आपके ऐसन बढ़िया बलाग लिखै क मौका देत रहिहीं ए सियासी लोग!