04 मई, 2007

कहीं आप देशभक्त तो नहीं हैं?

मैं देशभक्त नहीं हूँ. न होना चाहता हूँ, मैं देशभक्ति से डरता हूँ क्योंकि दुनिया की हर लड़ाई की वजह वही रही है.

मैं देशप्रेमी हूँ. दुनिया भर में जितनी तरक़्की हुई है उसके पीछे लोभ-लाभ के अलावा कहीं न कहीं देशप्रेम ज़रूर रहा है.

देशप्रेम में भावना की ताक़त है तो देशभक्ति में अंधश्रद्धा की दासता. प्रेम दोतरफ़ा रिश्ता है जबकि भक्ति एकतरफ़ा.

सबसे ख़तरनाक बात जो देशभक्त बार-बार कहते हैं-"देश इंसान से बड़ा है".

यह सरासर ग़लत बात है कि देश इंसान से बड़ा है, कोई भी व्यवस्था किसी जीवित इंसान बड़ी नहीं हो सकती. देश एक व्यवस्था है जिसे इंसान ने ही बनाया है, इसमें व्यापक हित दिखता है कि व्यवस्था बनी रहे इसलिए कोई भी व्यवस्थावादी यही कहेगा कि देश बड़ा है लेकिन कोई सच्चा मानवतावादी इसे स्वीकार नहीं कर सकता. मैं तो नहीं करता. दुनिया में सब कुछ इंसान के लिए है, इंसान से बढ़कर कुछ नहीं.

देश की एकता और अखंडता कोरी राजनीतिक नारेबाज़ी है, दुनिया भर के देशों का नक़्शा बीसियों बार बदला है, आगे भी बदलेगा. लेकिन देशभक्ति के नाम पर हज़ारों-लाखों बेकसूर लोगों की जान लेने के बाद. टोबा टेक सिंह भारत में हो या पाकिस्तान में इससे आदमी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, देशभक्ति या हुब्बुलवतनी के दुकानदारों और उनके भोले ग्राहकों को फ़र्क़ पड़ता है.

देशप्रेम अपने परिवार-परिवेश के प्रति प्रेम का विस्तार है. मैं देशप्रेमी हूँ, इसलिए नहीं कि भारत एक बेहतरीन देश है, मैं देशप्रेमी इसलिए हूँ कि मेरे जीने का ढंग हिंदुस्तानी है जो एक विशु्द्ध संयोग है, मेरे पूरे अस्तित्व से मेरी संस्कृति को अलग नहीं किया जा सकता, मेरा भारत-प्रेम एक सांस्कृतिक प्रेम है. एक स्वाभाविक प्रेम है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं है, जिसके लिए किसी ने मुझे पट्टी नहीं पढ़ाई है.

देशभक्ति एक थोपा हुआ राजनीतिक विचार है जो इनडॉक्ट्रिनेशन यानी घुट्टी पिलाने से पैदा होता है, देशभक्ति को हर देश में सर्वोच्च आदर्श के रूप में स्थापित किया गया है. दुनिया के ज़्यादातर देशों के नेताओं ने जितने भी घृणित कार्य किए हैं देशभक्त जनता ने उसके गुण-दोष पर विचार किए बिना देशभक्ति के नाम पर मानवता के ख़िलाफ़ किए गए सभी अन्यायों का समर्थन किया है.

देशभक्त अमरीकी जनता ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए जाने को ग़लत कहना ग़लत समझा. देशप्रेमी जनता ने हिरोशिमा और नागासाकी में दोबारा जान फूँकने का चमत्कार कर दिखाया. उदाहरण हज़ारों हैं लेकिन उनमें जाने से बहस भटक जाती है.

देशभक्त पाकिस्तानी नहीं मानते कि तालेबान को समर्थन देकर पाकिस्तान ने अपने फ़ायदे के लिए अफ़ग़ानिस्तान के लिए इतनी बड़ी मुसीबत पैदा कर दी, देशभक्त भारतीयों ने कब माना कि तमिल विद्रोहियों को प्रशिक्षण और हथियार देकर भारत ने श्रीलंका की आम जनता का अहित किया. दोनों देशों के देशभक्त तो यही नहीं मानेंगे कि ऐसा कुछ हुआ भी था.

दुनिया में सबसे आसान है देशभक्त होने का तमगा ख़ुद पहन लेना और देशद्रोही होने का किसी और को पहना देना. अगर किसी ने देश की बहुसंख्य जनता का अहित किया है तो वह यूँ ही मानवता का अपराधी है लेकिन जिसे देशद्रोह कहा जाता है वह हमेशा राजसत्ता के हितों पर चोट होती है, न कि जनता के हितों पर. जनता के हितों पर सबसे अधिक चोट वही कर सकता है जो सत्तासीन हो, लेकिन वह कभी देशद्रोही नहीं होता.
सवाल उठ सकता है कि इस तरह तो भगवान की भक्ति में भी बुराई है. ईश्वरभक्ति और देशभक्ति में एक बुनियादी फ़र्क़ है. ईश्वर राजनीतिक सत्ता के केंद्र में नहीं बल्कि अध्यात्मिक सत्ता के केंद्र में है. देश या राष्ट्र नाम की व्यवस्था राजनीति और कूटनीति की धुरी है.

बहस बहुत लंबी हो गई है. बहरहाल, हर देशभक्त यही तो चाहता है कि देश श्रेष्ठ बने लेकिन भक्ति श्रेष्ठ बनाने का नहीं बल्कि आँख मूँदकर अराध्य को सर्वश्रेष्ठ मान लेने का नाम है, किसी को आपने यह सोचकर पूजा करते देखा है कि इससे शायद रामजी या कृष्णजी और बेहतर हो जाएँ.

प्रेम हो तो आपको ग़ुस्सा भी आएगा, खीझ भी होगी और ये चाहत भी सुलगती रहेगी कि आप जिससे प्रेम करते हैं वह कैसे बेहतर बनेगा.

9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सही फरमाया आपने.
अब तक दोनो को एक ही मानते रहे.

Pratik Pandey ने कहा…

देश प्रेम और देश भक्ति का यह फ़र्क़ तो शब्दों का हेर-फेर जान पड़ता है। क्या किसी भी भूखण्ड के प्रति किसी भी तरह का लगाव अन्यों से दूरी पैदा नहीं करता?

बेनामी ने कहा…

जनता के हितों पर सबसे अधिक चोट वही कर सकता है जो सत्तासीन हो, लेकिन वह कभी देशद्रोही नहीं होता.
सिर्फ एक लाइन में बहुत कुछ बयां कर दिया।

भक्ति अंधी होती है और दूसरों से बलिदान मांगती है, प्रेम पागल होता है और अपना बलिदान करता है।

बेनामी ने कहा…

हमेशा की तरह एक बढ़िया लेख .

सार्थक बात है.

azdak ने कहा…

क्‍या मालिक,

कभी-कभी आप ऐसी ज्ञान की बातें करते हैं कि जी करता है आगे बढ़कर आपके कदम चूम लें!.. अब दिक्‍कत यह है कि आपने कदम इतना दूर स्‍थापित किया हुआ है.. और वीसा और हवाई टिकट के पीछे इतने पैसे खर्च होते हैं! ख़ैर, सब बैकलॉग में मानकर चलिये. अगली दफा गरीब भूमि पर जब पैर रखना हो, अग्रिम में सूचित किये रखियेगा कि हम तैयारी से भागकर आयें और गोड़ छू सकने का पुण्‍य प्राप्‍त करें!

अभय तिवारी ने कहा…

व‌ाह ब‌न्धु..ब‌हुत ब‌ढि़य‌ा लिख‌ा है.. आज मुझे आपको ग‌ले ल‌ग‌ाने क‌ा जी क‌र रह‌ा है..

बेनामी ने कहा…

"देशभक्त अमरीकी जनता ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए जाने को ग़लत कहना ग़लत समझा. देशप्रेमी जनता ने हिरोशिमा और नागासाकी में दोबारा जान फूँकने का चमत्कार कर दिखाया."
मैं स्वीकृति में हाथ उठाता हूं

bhuvnesh sharma ने कहा…

वाकई देशभक्ति के करण मानव को होने वाली क्षति पर सही लिखा है..

Srijan Shilpi ने कहा…

देशभक्ति और देशप्रेम के बीच का यह सूक्ष्म और गहन विश्लेषण बहुत सुन्दर लगा। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि में देशप्रेम शीर्षक से जो प्रसिद्ध निबंध लिखा था, उसका मूल भाव भी यही था और यही वजह थी कि उन्होंने देशप्रेम के बारे में लिखा, न कि देशभक्ति के बारे में। देशप्रेम का मतलब है देश की मिट्टी, इसके खेत-खलिहान, यहां की आवो-हवा, यहां की संस्कृति, यहां के निवासियों से प्यार; लेकिन सत्ता, संविधान, सीमा और सरकार के प्रति वफादारी देशभक्ति के दायरे में आते हैं।

प्रेम में सख्यभाव है और यह बराबरी का अधिकार देता है, और जाहिर है कि यदि प्रेमी में कोई बात गलत है तो उसके सुधार की चेष्टा भी फ़र्ज समझकर की जाती है। भक्ति में दास्यभाव है और यहां स्वामी के आदेशों का निष्ठापूर्वक पालन ही सबसे बड़ा धर्म है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की स्थिति तो विचित्र है। कहने को जनता स्वामी है और सरकार उसकी सेवक। लेकिन व्यवहार में ठीक उल्टा। सरकार चलाने वाले प्रशासनिक अधिकारी यहां नौकरशाह कहे जाते हैं और वे खुद को जनता का मालिक मानते हैं। राजनेता जुबान से खुद को जनता का सेवक बताते हैं, लेकिन व्यवहार में वे उनके मालिक के मालिक की तरह आचरण करते हैं। भारत की जनता यदि देशप्रेमी हो भी तो उसके प्रेम का आश्रय कौन होगा-- सरकार, संविधान, नेता, नौकरशाह?

मान लिया कि आप देशभक्त नहीं, बल्कि देशप्रेमी हैं तो आप फिर आप देश के लिए क्या करना चाहेंगे, क्या सकते हैं आप? इससे आपके व्यवहार और कार्य में क्या फर्क पड़ेगा, यह जानना अधिक महत्वपूर्ण है।

यदि कल कोई ऐसा नेतृत्व भारत में पैदा हो जो काली कमाई रखने वाले तमाम नेताओं, साधुओं, अभिनेताओं, माफियाओं और उद्योगपतियों की संपत्ति जब्त करके उन्हें जेल में डाल दे और उस धन को देश की अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी को दूर करने और बुनियादी अवसंरचना के विकास में लगाने का निर्णय कर ले तो आप उस नेतृत्व के जज्बे को देशप्रेम कहेंगे या देशभक्ति?