18 जून, 2007

नारद के सभी ईस्वामियों के समर्थन में

शीतल छाँव है, कलियाँ खिली हैं, खुशियाँ बिखरी हैं, भ्रमर गुंजन कर रहे हैं, गीत-संगीत का माहौल है, सब कुशल-मंगल है, शांति-शांति है, छेड़छाड़ थोड़ी-सी है जैसे शादियों में गालियाँ गाई जाती हैं. समधी मिलन जैसा समाँ है, सब एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं. अहा! कितना सुंदर आयोजन है, आप धन्य हैं, अरे आप भी धन्य हैं.

दिन भर के थके-हारे योद्धा यहाँ कहानियों, कविताओं और चुटकुलों के चंदोवे में विश्राम करते हैं. भोमियो, जावा, ड्रीमवीवर, विस्टा जैसे-जैसे अग्रगामी पात्र हैं जो पूरी दुनिया के दुख-दर्द मिटाकर आनंदवर्षा कर रहे हैं. पूरी दुनिया एक दूसरे से जुड़ी है, जो नहीं जुड़े हैं वे चूहड़े हैं, पहले भी थे आगे भी रहेंगे.

हम इस हरी-हरी वसुंधरा की स्वस्थ-समृद्ध संतानें हैं, हमने अपना भाग्य अपनी मेहनत से रचा है, जो नीचे से कराहते हैं उनकी बात करने के लिए नेता लोग हैं, टुटपुंजिए पत्रकार हैं.

यह हमारी दुनिया है, हमने बनाई है, यहाँ हमारी प्रगति की ललक है, यहाँ हमारी समझ की चमक है, यहाँ हमारी शक्ति की दमक है, हमारे पास इसका पासवर्ड है. यहाँ उन लोगों की बात क्यों करते हो जो किसी कैम्प-वैम्प में अपनी करनी का फल भोग रहे हैं.

हवाई बातों के पवनपुत्र हमारी इस अ-शोक वाटिका में उत्पात मचाने आ गए हैं, हँसते-खेलते सरल परिवार में गरल लेकर 'विषराज' आ गए हैं, लेकिन सुन लो अब कलियामर्दन के लिए बाल-गोपाल तैयार हैं. अधरों पर मीठी-मीठी वंशी है लेकिन सुदर्शन चक्र को न भूलो, वह भी है हमारे पास.

प्रगति हो रही है, शेयर बाज़ार आसमान छू रहा है, अमरीका-यूरोप लोहा मान रहे हैं, जीडीपी उठान पर है...यह सब आपके दलित-गलित, वामपंथी-दामपंथी विचारों की वजह से नहीं हो रहा है, यह हमारी प्रतिभा है, योग्यता है...विचारों से न कुछ हुआ है, न होगा, ज़रूरत है मेहनत, लगन और सबसे बढ़कर बहसबाज़ी में समय बर्बाद न करने की.

पसीना बहाकर, सॉफ्टवेयर उड़ाकर, लिंक लगाकर, रातों की नींद गँवाकर...हमने एक कुनबा बनाया जिसमें सब समानधर्मा लोग थे, सबको विश्वास था कि--लेकर हाथों में हाथ, हम चलेंगे साथ-साथ, हम होंगे कामयाब एक दिन...सबसे बड़ी पंगत-संगत-रंगत अपनी होगी, सब लोग एक क़तार में बैठकर भंडारा खाएँगे और जयकारे लगाएँगे.

हमने सपनों की कोमल दुनिया बसाई थी लेकिन यहाँ भी रुखे-सूखे-भूखे लोगों की बात करने वाले आ धमके. अकाल पीड़ित-बाढ़ पीड़ित और तो और दंगा पीड़ितों की बात करने वाले आ पहुँचे. इसके कहते हैं रंग में भंग करना.

जो गुजर चुका है वह गुजरात इनके लिए गुजरता ही नहीं है...चलता ही जा रहा है. गांधी के राज्य को जिस मोदी ने गौरव दिलाया उसे ये लोग रौरव बता रहे हैं, हद होती है नासमझी की. यहाँ आने से पहले तक इन्हें कोई पूछता न था और अब रंग देखिए कि एक बदज़बान आदमी की ज़बान काटे जाने पर छोड़कर जाने की धमकियाँ दे रहे हैं. जहाँ नौकरी करते हो वहाँ दो न ये धमकी, अगर हिम्मत है तो...

हम रात-दिन एक करते हैं, गैजेट्स, सॉफ़्टवेयर्स, एप्लिकेशंस के बारे में पढ़ते हैं ताकि देश का विकास हो, हिंदी फले-फूले...और लोग हैं कि चले आते हैं दो चार उलजलूल वाद-प्रतिवाद-संवाद-चर्चा-परिचर्चा वाली किताबें पढ़कर वही घिसापिटा राग लिए... लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यक और साम्राज्यवाद का रोना लेकर, एक ही सॉफ्टवेयर है जिसका पिछले दो जेनरेशन से कोई अपग्रेड नहीं आया है.

राजनीति से हमारा क्या लेना-देना, हम तो शांतिप्रिय-प्रतिभाशाली लोग हैं जो देश, भाषा, संस्कृति और सबसे बढ़कर इंटरनेट क्रांति में योगदान दे रहे हैं. हाय! क्या वक़्त आ गया है, हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ कर रही है, एक बार कोड का एक कैरेक्टर बदल दिया तो जीवन भर एरर में गुज़रेगा.

(इसे कृपया व्यंग्य न समझें, यह पिछले कुछ दिनों में नारद पर लिखे गए सच्चे पोस्टों और टिप्पणियों पर आधारित है. यह एक शांतिप्रिय कुनबे का घोषणापत्र है इसे उसी तरह देखने में सबकी भलाई निहित है. नारद के सभी इलेक्ट्रॉनिक स्वामियों को सादर समर्पित. )

12 टिप्‍पणियां:

अभय तिवारी ने कहा…

बहुत मार्मिक.. बहुत मारक..

मसिजीवी ने कहा…

हम रात-दिन एक करते हैं, गैजेट्स, सॉफ़्टवेयर्स, एप्लिकेशंस के बारे में पढ़ते हैं ताकि देश का विकास हो, हिंदी फले-फूले...और लोग हैं कि चले आते हैं दो चार उलजलूल वाद-प्रतिवाद-संवाद-चर्चा-परिचर्चा वाली किताबें पढ़कर वही घिसापिटा राग लिए... लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यक और साम्राज्यवाद का रोना लेकर, एक ही सॉफ्टवेयर है जिसका पिछले दो जेनरेशन से कोई अपग्रेड नहीं आया है.


इसी आऊटडेटेड साफ्टवेयर से एक संबोधन ई-सवामी को हमने भी किया- नारद तक पहुँच नहीं रहा (शायद कोड में दिक्‍कत है :)) देखें
http://masijeevi.blogspot.com/2007/06/blog-post_18.html

संजय बेंगाणी ने कहा…

आभार सहीत ग्रहण किया जाता है.

RC Mishra ने कहा…

अनाम दास जी आज के हालात मे आपके लेख को व्यंग्य समझने की भूल की जा सकती है, अच्छा किया आपने ये बात स्पष्ट कर दी।
एक आदर्श समाज की कल्पना करना उसके लिये प्रयास करना, मात्र इसलिये गलत नही ठहराया जा सकता कि इतनी असमानताओं/बुराइयों के बीच ये कैसे सम्भव है। उद्देश्य नेक हो, कर गुजरने की लगन और क्षमता हो तो कामयाबी जरूर मिलती है।

azdak ने कहा…

मेरी ओर से पंजीरी और डेढ़ किलो फटी दही भी चढ़ावे में स्‍वीकार करें! प्‍लीज़!

Manish Kumar ने कहा…

भाई अनामदास आप अच्छा लिखते हैं। आपके वेचारिक संतुलन का मुरीद रहा हूँ। पर आज की स्थिति में में आपका ये लेख मुझे जचा नहीं
अपनी लेखनी के द्वारा आप आम पत्रकार और बाकी चिट्ठाकारों मे इतनी कटुता क्यूँ पैदा कर रहे हैं ?
देश की समस्याओं को देखने बूझने और उस पर आप लोगों के आलेख पढ़ने से हम सब भी लाभान्वित होते हैं, सोचने पर मजबूर होते हैं , अपनी सोच भी बताते हैं। खुद उन्हीं विषयों के बारे में लिख पाते हैं जिससे के साथ लगता है कि न्याय कर सकें। पर कहानी, कविता, संगीत, तकनीक पर लिखने वाले आपकी भावनाओं की कद्र नहीं करते ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप?
इस बहस में ज्यादातर सुधीजनों और आपने भी एक बार विचार सबके सामने रख ही दिये हैं। अब लगातार इस आरोप प्रत्यारोप पर व्यर्थ समय गंवाने की जगह अगर कर आप अनिल रघुराज, चौखंभा और उमाशंकर सिंह जैसे पत्रकारों की तरह आम जनमानस से जुड़े विषयों को पहले की तरह उठाते रहते तो मुझे वो आपके जज्बे, आपकी लेखनी का ज्यादा सही उपयोग लगता।

बेनामी ने कहा…

साधुवाद ।

ढाईआखर ने कहा…

रचनात्मकता इसी को कहते हैं।

Unknown ने कहा…

बहुत सही लिखा अनामदास जी,
दिक्कत सिर्फ़ यही है कि लोगों को सिर्फ़ गुजरात याद है और नींद में भी वे मोदी-मोदी भजते रहते हैं इसके पहले का या उसके बाद का उन्हें कुछ भी याद नहीं (या करना नहीं चाहते), ना मेरठ, ना मलियाना, ना मालेगाँव ना भागलपुर । कश्मीर या असम की तो बात ही ना करें, क्योंकि वहाँ पर हिन्दू बेहद खुश है, फ़ल-फ़ूल रहा है । अपनी जो भी भडास है सब नारद पर उल्टी कर दो बस, हिट्स भी खूब मिलेंगे, और दो चार फ़र्जी धर्मनिरपेक्षतावादियों का साथ भी मिल जायेगा, लेकिन अनामदासजी ये लोग भूल जाते हैं कि हिन्दुत्ववादियों ने भी उतना ही आटा खाया है जितना इन्होंने, फ़िर भला ललकारने पर वे चुप कैसे रहेंगे, बस हो गया नारद का कबाडा़, समझना यह होगा कि शुरुआत किसने की और माहौल को बिगाडने की जिम्मेदारी किसकी है, बस.. अपने को तो इस बहस से कोई लेना-देना नहीं है, दुःख सिर्फ़ इस बात का है कि इस जूतमपैजार में कई अच्छे-अच्छे चिठ्ठे लोग पढ नहीं पाये, इस शोरशराबे में वे खो गये...और ऐसा नहीं कि इस पर पूर्णविराम लग गया है, जब कभी किसी "सो कॉल्ड" पत्रकार पर धर्मनिरपेक्षता का भूत सवार होगा, उसे उल्टी करनी होगी तो वह नाम बदलकर आयेगा, फ़िर उसे भी जवाब दिया जायेगा, मतलब कि यह अन्तहीन है...

Yunus Khan ने कहा…

भईया अनामदास आपने आज दिल गदगद कर दिया । सही समय पर स्थिति का सही आकलन किया । अदभुत है ।

हमने एक कुनबा बनाया जिसमें सब समानधर्मा लोग थे, सबको विश्वास था कि--लेकर हाथों में हाथ, हम चलेंगे साथ-साथ, हम होंगे कामयाब एक दिन...सबसे बड़ी पंगत-संगत-रंगत अपनी होगी, सब लोग एक क़तार में बैठकर भंडारा खाएँगे और जयकारे लगाएँगे.


चलिये उम्‍मीद करें कि पंगत संगत रंगत बने । अच्‍छा माहौल रचे । समानधर्मा लोग मज़े मज़े से रहें । और जयकारे लगाएं ।

बेनामी ने कहा…

हमने एक कुनबा बनाया जिसमें सब समानधर्मा लोग थे, सबको विश्वास था कि--लेकर हाथों में हाथ, हम चलेंगे साथ-साथ, हम होंगे कामयाब एक दिन...सबसे बड़ी पंगत-संगत-रंगत अपनी होगी, सब लोग एक क़तार में बैठकर भंडारा खाएँगे और जयकारे लगाएँगे.

आपने निराश नही किया अनामदासजी और हां हम कुछ कामयाब तो हुए ही होंगे!

आज जब गैर तकनीकी लोगों को हमें हिदी में गरियाते हुए, कोसते और ताने देते हुए पढते हैं तो लगता ही है की हम कामयाब हुए हैं - आप अपने आसपास वालों को बताते हैं या नहीं की हिंदी में ये सब करना कितना आसान है! कई रातें लगती हैं साहब तब जा कर मिलता है ये सिला! ये तोहफ़ा तो फ़्रेम कर के रखेंगे हम! आगे आगे देखिये और क्या क्या आता है! :)

इरफ़ान ने कहा…

मुझे इस नतीजे पर पहुंचने और कुछ दिनो में निराश होने का मौक़ा दीजिये कि आप के अंदर एक अनिवार्य क्रोध है जिसका आप भरसक रचनात्मक इज़हार करते हैं. आपके नाम में जोश भले न हो आप जोशीले हैं. इस पोस्ट में आपने वही लिखा है जो आप से अपेक्षित था और वह भी 'जे के कहल जाला लहाय-लहाय के सरियउले हउआ.'