06 फ़रवरी, 2008

मी मंदबुद्धि मुंबईकर बोलतो आहे

"मैं अकेला नहीं है, मेरे साथ 'ठोक रे' जी की सशक्त विचारधारा है, हमारे साथ तोड़फोड़कर है, काँचफोड़े है, माचिसमारे है, भाईतोड़े है. हमने बहुत अन्याय सहा है, अब नहीं सहेंगे, झुनका-भाखर आधा पेट खाके हम पहले ढोकला-थेपला वालों से लड़े, फिर इडली-सांभर वालों से, उसका बाद लिट्ठी-चोखा वालों से भी लड़ेंगे.

हमारे साथ शुरू से अन्याय हुआ है. अँगरेज़ों से भी पहले मुगलों के जमाने में कोल्हापुर-सोलापुर-ग्वालियर-इंदौर तक हमारा राज रहा है लेकिन हमें आज़ादी के बाद गुजरातियों के ताबे में ला दिया, मुंबई का चीफ़ मिनिस्टर वलसाड़ का गुजराती मूत्रपायी देसाई को बनाया, मराठवाड़ा में कोई मरद माणूस नहीं था मुख्यमंत्री बनने के लिए. कहने को स्टेट का नाम मुंबई था लेकिन आज़ादी के तेरह साल बाद तक हमने भाऊ की जगह भाई को, पाटील के बदले पटेल को झेला. 1960 में जाकर हमें अलग स्टेट मिला माझा महाराष्ट्र.

आमची मुंबई अब स्टेट से कैपिटल बना, ठोक रे साहब ने देखा कि मराठी मानूस कार्टून बन गया है वो कार्टून बनाना छोड़ दिया और बाघ छाप का लाकेट बनाया जो हमने अपना गला में लटकाया. पहले सब सापड़-उडुपी बंद करा दिया, हमारा इधर का नौकरी में कोई दामले नहीं, कांबले नहीं, तांबे नहीं, पुणतांबेकर नहीं, सब वरदराजन, अय्यर, पिल्लै, अयंगार...उनको गुस्सा ऐसे नहीं आया. जो 'सामना' नहीं पढ़ता उसको कइसा समझ आएगा इतना बड़ा साजीश?

साजीश तो बहुत हुआ मराठियों के खिलाफ, दाऊद,शकील और अबू सालेम भाई लोग सब मुसलमान है, शेयर मार्केट हमारा है लेकिन उधर सोपारीवाला-खोराकीवाला-चूड़ीवाला है, फिल्म इंडस्ट्री हमारा है लेकिन उधर भी खान-कपूर है, क्रिकेट खेलता है तेंदुलकर-कांबली मगर कप्तान बनता है अज़रुद्दीन-गंगोली, मराठी पार्टी बनाई उसमें भी रायगढ़ का नहीं, रोहतास का बिहारी भइया संजय निरूपम एमपी बन गया, तांबे-खरे-खोटे सब किधर जाएँगे? उनके पास भिड़े होने के सिवा उपाय क्या है बोलो.

बोलते हैं कि भइया लोग नहीं होंगे तो दूध नहीं मिलेगा, टैक्सी नहीं चलेगा, सब्ज़ी नहीं मिलेगा, मैं कहता हूँ झुग्गी नहीं रहेगा, कचरा नहीं रहेगा, बास नहीं रहेगा...हम म्हाडा वन बेडरूम फ्लेट में गाय बाँधेंगे, टैक्सी नहीं बेस्ट का बस में जाएँगे, अमिताभ बच्चन नहीं श्रेयस तलपड़े का सिनेमा देखेंगे...

इन्हीं मराठी विरोधी प्रवृत्तियों और लोकशाही विरोधी पत्रकारों से निबटने के लिए हमारे ठोक रे साहब ने शिवाजी की प्रेरणा से सेना बनाई. हमारी सरकार बनी लेकिन दुर्भाग्य है कि बालासाहेब का भतीजा उनके बेटे जैसा दिखता है और बेटा किसी और के जैसा...इस पर भी हमारे दुश्मन ठोक रे साहेब का चरित्रहनन करते हैं.

उन्होंने देश का कितना काम किया, भारत-पाकिस्तान मैच का विरोध किया, कितना फ़िल्म का मातुश्री में स्पेशल स्क्रीनिंग कराके राष्ट्रविरोधी सीन कटवा दिया, कितनी मराठी मुल्गियों को रोल दिला दिया.

घर की बात है, मैं बाहर नहीं बोल सकता लेकिन उद्धव ठंडा है, इसीलिए ठोक रे साहब ने अपना ट्रेनिंग,आशीर्वाद और पार्टी का कमान राज को दिया था लेकिन घर का झगड़ा में उद्धव ने ठोक रे साहब को ठग लिया. राज ने सिद्धांत वही रखा है जो ठोक रे साहेब से सीखा है, बोलने का लोकशाही-करने का ठोकशाही. ठोक रे साहब को आज तक किसी ने नहीं ठोका, राज का राज नहीं है तो क्या हुआ एक दिन ज़रूर आएगा, तब तक उसका राज हमारे दिल पर है".

इतना कहकर मनोज तिवारी के घर से आ रहा मंदबुद्धि मुंबईकर भोजपुरी के दूसरे स्टार रविकिशन के घर की ओर रवाना हो गया है.

मेरा इतना ही कहना है कि मंदबुद्धि मुंबईकर कम ही मिलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वाघमारे ने कभी बाघ नहीं मारा होता, पोटदुखे के पेट में दर्द शायद ही होता है और हर पांचपुते से पाँच बेटे हों यह ज़रूरी नहीं है. मराठियों का जेनरलाइज़ेशन करने का इरादा बहुत ख़तरनाक है, उसके बारे में सोचना भी पाप है, इरादा सिर्फ़ उन मुंबईकरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का है जिनकी भावनाएँ निर्मल नहीं हैं.

शिव सेना और उसके मानस पुत्र महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से सहानुभूति न रखने वाले सभी मराठियों से क्षमा याचना सहित, ख़ास तौर पर जिनके सरनेम का यहाँ इस्तेमाल हुआ है, सिर्फ़ प्रांतवादी मानसिकता का उपहास करने के लिए. राज ठाकरे का समर्थक होने के लिए मराठी होना ज़रूरी नहीं है, आप जहाँ हैं वहाँ राज ठाकरे टाइप लोगों को टाइट रखें वर्ना आप भी पाप के भागी होंगे.

20 टिप्‍पणियां:

गुस्ताखी माफ ने कहा…

बेहद बेहद सशक्त

azdak ने कहा…

मी मंदबुद्धि गुंडा सुनतो आहे!

Unknown ने कहा…

बहुत विनम्र कटाक्ष....सीधे निशाने पर।

बोले तो छकास !!

अभय तिवारी ने कहा…

भाई अनामदास आप की ये आखिर में लिखी क्षमायाचना वैसे ही है जैसे राज ठाकरे ने तीन-चार दिन के हंगामे के बाद सॉरी बोल दिया है.. आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी..
आज के डी एन ए में एक समाचार के अनुसार पिछले दिनों की घटनाओं की सभी मराठी पत्रों ने एक स्वर से निन्दा की है..

बेनामी ने कहा…

गजब लिखा है भाई..

अनामदास ने कहा…

@ अभय भाई,हमने हाथ के हाथ माफ़ी मांग ली,राज ठाकरे ने देर से माँगी, हमने सच्चे मन से मांगी,राज ठाकरे के मन में मैल है. इस पोस्ट का मक़सद क्षेत्रीय दुर्भावना से प्रेरित बंगाली, गुजराती,पंजाबी, बिहारी मराठी...सभी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना है. मराठी अख़बार समझदार हैं, मैं तो मंदबुद्धि मुंबईकर की बात कर रहा था, लिखा तो है कि मंदबुद्धि मुंबईकर कम ही मिलते हैं, अब ऐसा कैसे लिख दूं कि नहीं मिलते हैं.

आलोक ने कहा…

वाह। सही मस्ती ली है।

VIMAL VERMA ने कहा…

मी ज़हरऊगलकर बोलते.....गज़ब लिखा है बोले तो रापचिक,ठोकरे पर ठीकरा अच्छा फोड़ा है ,मेरे यहां के मराठी मानुष भाई लोगों ने पढ़ा और हँसते हँसते लोट पोट हो गये, बोले तो बिन्दास लिखा है आपने,मीडिया की भी भूमिका कुछ संदेहास्पद ही है मानो इस फ़िराक में लगा है कि कुछ करा के ही मानेंगे भाई लोग।

रंजना ने कहा…

anaam bhai,yugon yugon tak aapka naam rahe.bahut jhakkasss likha bhai,apna to vash chahe to saare prantvadiyon jis kisi bhi prant ke hon unhe ek jagah jama kar ek taapoo par bhej diya jaye aur wahan ek prant bana lene kaha jaye.ham sukhi ho jayenge aur sare prantwaadi bhidgar saaf.

Pratyaksha ने कहा…

"आप जहाँ हैं वहाँ राज ठाकरे टाइप लोगों को टाइट रखें वर्ना आप भी पाप के भागी होंगे"

यहाँ तो पाप का घड़ा न न पाप का कूँआ दिख रहा है मुझे .. चलती हूँ कुछ और मंदबुद्धि टाईप खोजने

Priyankar ने कहा…

बहुत सधा हुआ और असरकारक व्यंग्य .

बेनामी ने कहा…

बहुत साल पहले मुम्बई में जब रहता था तब एक बार मिड-डे में फोटो देखा. कुछ शिवसैनिक एक ऐसे व्यापारी से कान पकड़वा कर उठक-बैठक लगवा रहे थे जिसने विज्ञापन में लिखा था, 'North Indian preferred'.

चाहे उसका काम ऐसा था जिसमें उसे हिंदी भाषी की खास ज़रुरत थी.

तब पहली बार मुंबई में जाती की स्थिती समझी. फिर वहां गाहे-बगाहे लोगों से गुजराती व्यापारियों की बुराई सुनी, जिन्होंने 'सारी मुंबई पर गुटबाजी करके कब्जा जमा रखा है'

फिर ऐसे लोगों से मिलने का मौका भी मिला जो व्यापार तो करना चाहते थे, लेकिन उत्तर भारतियों से करने से बचते थे.

हमारी इमेज ही ये है.

वहां बदलाव लाने के लिये शायद यहां भी कुछ बदलना होगा.

अमिताभ मीत ने कहा…

कमाल किया है सर. बोले तो, मस्त तीर मारा, एकदम निशाने पर.

अजित वडनेरकर ने कहा…

जबरदस्त मारा है , ठोक कर मा है रे....पढ़े लिखे को भी समझ में आए और बेपढ़े को भी।

यह कह कर शव में छिपा बेताल फिर पेड़ पर जा लटका।

debashish ने कहा…

बेहतरीन, सटीक और बेहद मारक :) एक साँस में पढ़ गया।

ठाकरे उवाच से ज्यादा मुझे इस बात पर शर्म आती है कि किस तरह सरकार और कानून ऐसे गुंडो के सामने घुटने टेक देता है। इनको रोकने से, चेतावनी देने से और तो और नुकसान हो जाने पर गिरफ्तारी तक करने से डरते हैं। इन सरकारों का पुरुष दुम दबाये कुत्ते की पूँछ की तरह कहीं अंदर सिकुड़ चुका है, आम आदमी का भला अब कौन तारणहार शेष है। इसी के बल पर ये इस्टैब्लिश्मेंट को ठेंगा दिखाये जो मन आये बोलते हैं, इनके मंदबुद्धि गुर्गे अब तो तालीबानियों की तरह कैमरे का महत्व भी समझ गये हैं, ताल ठोंककर ये आपकी माँ-भैन करेंगे, आप कुछ नहीं कर सकते। पुलिस भी ये हैं, गुंडे भी ये और नेता और सरकार भी ये। और हम...सिर्फ कठपुतलियाँ।

Batangad ने कहा…

गजबै पेल के दिया है भइया अनामदास। आपके ब्लॉग का लिंक बतंगड़ पर दे दिया है।
http://www.batangad.blogspot.com/

debashish ने कहा…

*पुरुष = पौरुष padhein.

बेनामी ने कहा…

जबरदस्त....मारक....सटीक...

पिछले हफ्ते पुणे-मुम्बई की सड़कों से गुजरते हुए यह आशंका मन में कहीं थी कि यदि किसी ऐसे मंदबुद्धि मराठी माणुषों की उन्मत्त भीड़ से अचानक पाला पड़ गया तो क्या कर सकूंगा।

हम तो ख़ैर सही-सलामत लौट आए, मगर रोज बिहार-यूपी के बेचारे गरीबलोगों की वहां हो रही मार-पिटाई ख़बरों में देख-सुनकर परेशान होता रहा। खासकर वह ख़बर कि ट्रेन के अनारक्षित डिब्बे में किसी तरह ठूंसकर वापस बिहार लौटने को मजबूर एक गर्भवती महिला को ट्रेन की टायलेट में बच्चा जनने के लिए मजबूर होना पड़ा, हृदयविदारक थी।

कितने होंगे राज ठाकरे के ऐसे "मंदबुद्धि" अंध-समर्थक मराठी युवक? कुछेक हजार, अधिक से अधिक। उनकी बेधड़क गुंडागर्दी के आतंक के कारण संविधान-सम्मत सरकारों की समस्त नैतिकता और कर्तव्यपरायणता को लकवा मार गया।

दिवाकर प्रताप सिंह ने कहा…

सधा हुआ तीर, एकदम सटीक निशाने पर! ऐसे ही लिखते रहिये...

शरद कोकास ने कहा…

बहुत बढिया व्यंग्य है सामुना मे भेज दीजिये ।