02 जुलाई, 2008

पोते के नाम थर्डवर्ल्ड के अम्मा-बाबा का संदेश

अगले शनिवार को मेरा बेटा चार साल का हो जाएगा, हम ख़ुश हैं कि वीकेंड है, बच्चों की कोई छोटी सी पार्टी कर लेंगे. बच्चे के बाबा-अम्मा (दादा-दादी) कई हज़ार किलोमीटर दूर बैठे तीन हफ़्ते से हलक़ान हो रहे हैं कि पोते का जन्मदिन आ रहा है, टाइम पर कार्ड मिलना चाहिए, पहुंचने में पता नहीं कितना वक़्त लगे.

सत्तर पार कर चुके बाबा मानसून के मौसम में कितने सरोवरों से गुज़रकर, पता नहीं कहाँ गए होंगे ग्रीटिंग कार्ड ख़रीदने. अम्मा-बाबा ने टिप-टिप करती दुपहरी पोते के लिए संदेश लिखने में ख़र्च की होगी. घर के पास कोई पोस्ट बॉक्स भी नहीं है, वे रिक्शे से जीपीओ गए होंगे, लाइन में लगकर लिफ़ाफ़ा रवाना किया होगा, इस आस के साथ कि मिल जाए और वक़्त पर मिल जाए. पिछले पाँच दिन से जब फ़ोन करो, एक ही सवाल होता है--"कार्ड मिला कि नहीं".

रुपए के नींबू तीन कि चार, इसी पर दस मिनट तक बहस करने वाले रिटायर्ड बाबा ने एक पल नहीं सोचा कि इस कार्ड के तीस रूपए क्यों. पोता ख़ुश होगा, कार्ड पर फुटबॉल बना है और दो गोरे लड़के खुश दिख रहे हैं, पोता उनके साथ आइडेंटिफाई कर सकता है. अपने इलाक़े के बच्चे भी फुटबॉल खेलते हैं लेकिन उनके फोटो वाला कार्ड थोड़े न छपता और बिकता है.

अम्मा-बाबा आपकी मेहनत सफल हो गई है, पोते का 'हैप्पी बर्थडे कार्ड' मिल गया है, जन्मदिन से तीन दिन पहले. पोते को कार्ड पढ़कर सुना दिया गया है. सुविधा के लिए बाबा ने अँगरेज़ी में लिखा है, प्यार से अम्मा ने हिंदी में. मज़मून एक ही है.

अनुवाद अम्मा ने कर दिया है, या फिर बाबा ने अम्मा वाले का अनुवाद अँगरेज़ी में किया है. वैसे तो बहुत फ़र्क़ पड़ता है कि अनुवाद अँगरेज़ी से हिंदी में किया गया है या हिंदी से अँगरेज़ी में. मगर इस मामले में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता.

बाबा-अम्मा का पत्र शब्दशः
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ऊँ नमः शिवाय
दिनाँक 26-06-2008

परम प्रिय चिरंजीव कृष्णाजी,
अम्मा-बाबा की ओर से ढेर सारा प्यार और शुभ आशीर्वाद, जन्मदिन मुबारक. तुम्हारा चौथा दिन है, तुम खूब खुश रहो, पूर्ण स्वस्थ और निरोग रहो. अपने पापा मम्मी की सब बातें मानना और उनको खुश रखना. पढ़ाई में मन लगाना. तुम जब लिखना सीख जाओगे तब हमें चिट्ठी लिखना. ईश्वर तुम्हें सारी प्रसन्नता और दीर्घायु प्रदान करें. जीवन में खूब उन्नति करो.
ढेर सारे प्यार के साथ
तुम्हारे अम्मा-बाबा
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पूरी चिट्ठी सुनने और कार्ड उलट-पलटकर देखने के बाद अनपढ़ पोते ने कहा है--थैंक यू.

बाबा को ठीक-ठीक पता नहीं है, उनका जन्मदिन मकरसंक्राति के एक दिन पहले होता है या एक दिन बाद. कार्ड भेजने, केक काटने का सिलसिला उनके लिए कभी नहीं हुआ, हमारा जन्मदिन मनाया गया और अब पोते का.

मैं कुछ ज्यादा भावुक हो रहा हूँ. रहने दीजिए, इतना बता दीजिए कि पीढ़ियों का यह प्यार ऊपर से नीचे ही क्यों चलता है, नीचे से ऊपर क्यों नहीं.

क्या यही वह जेनेटिक कोडिंग है जो हर अगली पीढ़ी को सींचती जाती है ताकि मानवीय जीवन धरती पर क़ायम रहे. क्या पलटकर उस प्यार को आत्मसात करने और महसूस करने का कोई गुणसूत्र हममें नहीं हैं, अगर हैं तो इतने क्षीण क्यों हैं?

18 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

कल एक न्यूजीलैण्ड में सेटल्ड रेलवे की पुरानी अफसर मिलीं। उनके अनुसार वहां पेरेण्ट्स और बच्चों में सम्बन्ध यूं हैं कि १८ साल के बाद बच्चे अपनी राह जायें। और अगर फिर भी वहीं डटे रहते हैं तो किराया दें।
अर्थात सम्बन्ध का फैमलीत्व चिड़ियों सा हो गया है।

Yunus Khan ने कहा…

बहुत मार्मिक बात कह दी है आपने । दिक्‍कत ये हो रही है कि हर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से ज्‍यादा सरोकार-विहीन हो रही है । शायद आत्‍मलीन भी । हो सकता है कि ये आत्‍मलीन होने का असर हो ।
संवेदना की कमी एक बहुत बड़ा कारण है ।
अगर किसी ने आपके लिए कुछ किया है---तो सोचा जाता है कि ये उसका फ़र्ज़ था । ये अहसास नहीं किया जाता कि इस फ़र्ज़ को, इस प्‍यार को निभाने के लिए सामने वाली ने कितनी मशक्‍कत और कितनी भावनाएं लगाई होंगी ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

छोटी लेकिन बेहद संवेदनशील पोस्ट। बच्चे के जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनायें।

E-Guru Maya ने कहा…

(^-^)

ghughutibasuti ने कहा…

कृष्णा को जन्मदिन की शुभकामनाएँ । स्नेह की धारा का मुख्यतः एक ही ओर बहने का कारण रचयिता का अपनी रचना से मोह तो है ही, उसके अलावा दोनों के पास एक दिन में अलग अलग घंटों का होना भी है। बच्चों के पास समय पूरा नहीं पड़ता और वृद्धों के पास कुछ अधिक ही होता है। वैसे प्रकृति ने शायद अगली पीढ़ियाँ चलती रहें के लिए भी ऐसा ही कुछ जुगाड़ किया है जिसे आप जेनेटिक कोडिंग कह रहे हैं। यदि पेड़ से गिरे सारे बीज केवल उसके तले ही उग जाने लगते तो कभी भी पेड़ की नस्ल का विस्तार नहीं होता।
घुघूती बासूती

Pratyaksha ने कहा…

शायद हर घर की कहानी आपने लिख दी । हमारे यहाँ भी बिलकुल ऐसा ही होता है ।
ई एम फोर्स्टर की व्हेयर एंजेल्स फीयर टू ट्रीड के कुछ भाग इसी संदर्भ पर याद आये ..अपके अंतिम पैरा को पढ़कर ..

PD ने कहा…

मैं आजकल ऐसे ही बहुत नौस्टाल्जिक हो रहा हूं.. आप रूलायेंगे क्या?

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छे. आपको बेटे के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ. उम्मीद है कि आपका बेटा आपके गुणसूत्रों पर ही चलेगा यानी आपकी तरह ही संवेदनशील होगा.

सुजाता ने कहा…

बहुत भावुक और निरुत्तरित कर गयी आपकी पोस्ट !

अभय तिवारी ने कहा…

बउआ को हमरेउ आसिरवाद!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

चि. क़ृष्णा को जन्मदिवस पर ढेर सारा आशीर्वाद -
आपके बाबा अम्मा की खुशी का अँदाज शायद तब होगा जब आप भी पोते को ऐसा ही कार्ड भेजेँगे :)
जहाँ सच्ची सँवेदनाएँ और प्यार होता है ऐसा घर वास्तव मेँ
धरती का स्वर्ग ही है !
-लावण्या

azdak ने कहा…

बेटालाल ने तो अलबत्‍ता हमारे जलमदिवस पर हमें नहीं दिया था, हम हारकर सौजन्‍यता में दे रहे हैं. बधाई. ओह रे, सौजन्‍यता. कभी तो तेल लेने जाये. आजा और आजी को बचाये?

Pooja Prasad ने कहा…

हमेशा की तरह मन को छू जाने वाली पोस्ट लिखी आपने। बेटे को जन्मदिन पर शुभकामनाएं ।

वैसे मैं भीड़ की बात नहीं करती, मगर अनामदास जी मुझे तो नहीं लगता कि नई पीढ़ी रूलाई की हद तक आत्मलीन और असंवेदनशील हो गई है। मुझे तो नहीं महसूस होता ऐसे। अपने मां पापा से ढंग से बैठ कर बात किए दो सप्ताह गुजर जाते हैं कभी कभी। छुट्टी वाले दिन अजीब सी व्यवस्तताएं होती हैं अक्सर.. ढंग से एक दूसरे से लाड़ दुलार का वक्त (?) नहीं मिलता। मगर, मां पापा के लिए मन में अक्सर प्यार उमड़ता फिरता है। हां, इस उमड़न को उकेर नहीं पाते, यह और बात है।

केवल अपने और दर्जन भर लोगों के व्यवहार के आधार पर कह रही हूं कि उतनी डिटैच्ड और अंकंसनZड नहीं नई पीढ़ी। और हर दशक पर जो पीढ़ी बदलती है, वह हर पीढ़ी पिछली पीढ़ी से जुदा होती है, फिर भी स्नेह जो पिया और जिया बचपन भर, उसके तंतुओं को खुद से अलग कर छिटक देना आसान नहीं यार! और क्या सचमुच इन तंतुअों को हम अलग करना चाहते हैं? नहीं। मुझे ये भी लगता है कि जब बात बच्चों और माता पिता के बीच स्नेहधारा के आवागमन की होती है तो इधर लोग एकतरफा और पूर्वाग्रह से ग्रसित लगते हैं...गलत भी हो सकती हूं..mगर फिलहाल बेटी की नजर से देख कर बोल रही हूं।

अनुराग अन्वेषी ने कहा…

दिल की बात कह तो सारा दर्द मत उढेल
अब लोग पूछते हैं ग़ज़ल है या कि मर्सिया

-सचमुच ये हरसिंगार हिला के तूने बुरा किया।

मेरी बेटी का जन्मदिन था 1 जुलाई को। उसके दादा भी ऐसे ही बेकररार थे। मीलों की दूरी के बावजूद लगातार पास थे।
बेटे को ढेर सारी दुआएं।

Unknown ने कहा…

यह सिलसिला दुतरफा है। नए से पुराने की तरफ जरा खामोशी से जाता है। अपने नए को किलकते, बढ़ते, हरियाते, छटकते जब अपना पुराना देखता है तो वह खामोश गुरूत्वाकर्षण कई गुना बढ़ जाता है जो उसे जीवन से बांधे रखता है।
खैर हैप्पी बिलेटेड बड्डे छटंकू।

Asha Joglekar ने कहा…

मार्मिक और सटीक ।

मनीषा पांडे ने कहा…

Aah-wah, sundar, marmik jaisa koi shabd abhi shayad nakafi hoga.... itna kahna paryapt hai ki aap ek bar padhana shuru karte hai to padhate hi jate hai... Aap padhte nahi balki lekhani khud ko padhava ke jati hai... Blog ki dunia se katkat kin-kin cheejo se vanchit hui hun, ab mahsus ho raha hai.... Ummeed hai jald hi laut sakun.... No unicode facility available here

IT ने कहा…

blog mujhe bhi vastav mein bahut emotinal kar gaya ...issey zyaada kuch aur tariff mein nahi kehsakti ..