चौकीदार की लाठी की ठक-ठक और सीटी की गूँज. बेमतलब की वफ़ादारी निभाते आवारा कुत्तों का कोरस. चर्र चूँ...ऊपर की मंज़िल पर खुला या बंद हुआ दरवाज़ा. बहुत रात हो गई अब सो जाना चाहिए.
गाड़ी रुकी है मेन गेट पर, कोई कॉल सेंटर वाला आ या जा रहा होगा. पीएसपीओ वाला पंखा घूमता है किर्र-किर्र की आवाज़ के साथ, टॉयलेट में पानी टपकता है...टिप टुप, टिप टुप...फेंगशुई वाले कहते हैं कि पानी टपकना शुभ नहीं होता.
'यार कमाल हो गया, पांडे भी साला ग़ज़ब आदमी है...' रात के डेढ़ बजे भी पांडे जी की चिंता, पता नहीं किसे सता रही है. बोलने वाला चल रहा था इसलिए आवाज़ भी चली गई. 'चटाक', लगता है गुडनाइट ठीक से काम नहीं कर रहा है.
उफ़, अक्तूबर में इतनी गर्मी, क्लाइमेट चेंज नहीं तो और क्या है. गरदन पर चमड़ी की सिलवटों में जमा होता पसीना. जेनरेटर की भट-भट-भड़-भड़ के तीस सेंकेड बाद पंखे की किर्र-किर्र सुहाने लगी. पावरबैकअप कितना ज़रूरी है.
'कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन'...किस चैनल पर आ रहा होगा ये गाना इस वक़्त, कोई कैसेट घूम रहा होगा या रेडियो बज रहा है. ये गाना कौन, कहाँ, कैसे और क्यों बजा रहा होगा. सोना चाहिए, वर्ना बीता हुआ दिन कोई नहीं लौटाएगा और आने वाला दिन ख़राब हो जाएगा.
सुबह
शूँशूँशूँशूँशूँशूँ...बगल वाले फ्लैट का कुकर बोला. शर्मा जी के यहाँ शायद या फिर जसबीर सिंह के घर, हद् है, रात को खाना पकाकर फ्रिज में नहीं रख सकते? कुछ और सो लूँ नहीं तो दिन भर ऊँघता रहूँगा. यही तो सोने का टाइम है और लोग हैं कि...
'मम्मी, मिन्नी मेरी बुक नहीं दे रही है,' 'चलो-चलो, बस मिस करनी है क्या', 'मैम को बता देना'...'ओह हो, मम्मी आप भी हद करते हो'... हमारे स्कूल जाने या न जाने पर कभी इतना हंगामा नहीं हुआ.
'मंगल भवन अमंगल हारीईईईई'... पता नहीं, लाउडस्पीकर बजाने पर लगी क़ानूनी रोक रात से लेकर सुबह कितने बजे तक है. नाइट ड्यूटी करने वाले तो सिर्फ़ इस बाजे की वजह से नास्तिक हो जाएँगे. ख़ैर, अपार्टमेंट से दूर है मंदिर, लेकिन इतना ज़ोर से बजाने की क्या ज़रूरत है.
'ढम्म'. लगता है, अख़बार की लैंडिंग हुई है बालकनी में. थोड़ी देर में देखता हूँ, ज़रा एक और झपकी मार लूँ. ऐसा क्या होगा अख़बारों में, रात को टीवी की ख़बरें और वेबसाइट देखकर सोया हूँ.
'टिंग टू'...'अरे, दूध का बर्तन धुला नहीं है क्या, दूधवाला आया होगा.' 'ढांग, ठन्न, टनननन...' 'भइया, आपको बोला था न कि मंडे से एक्स्ट्रा चाहिए...' 'ठीक है कल से ले आएँगे...' मदर डेयरी है, अमूल ताज़ा है, नानक डेयरी है, सुबह-सुबह तंग करने वालों से दूध लेना पता नहीं क्यों जरूरी है.
'घर्र,घर्र,घर्र,तड़,तड़,तड़,घर्र,घर्र,घर्र..घूँsss...', स्कूटर को तिरछा करके स्टार्ट करने वाले भी हैं इस अपार्टमेंट में, चारों तरफ़ तो सिर्फ़ कारें नज़र आती हैं, शायद ट्रैफ़िक जाम से बचने के लिए. मैं तो फसूँगा ही जाम में ख़ैर...
'डिंग,डां डिंग डू, डैंग डैंग,' मेरा अपना ही अलार्म है अब तो. साढ़े आठ बज गए, उठना ही पड़ेगा. अलार्म सुनकर किसी और की नींद खुलने के आसार नहीं हैं, सब पहले से उठे हुए हैं.
ये आवाज़ें बहुत याद आ रही हैं, चारों ओर सन्नाटा है. महीने भर की छुट्टी के बाद लंदन आ गया हूँ.
10 नवंबर, 2008
दिल्ली में रात-दिन की ऑडियो डायरी
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10 टिप्पणियां:
मैं छुट्टी पर हूँ.. मुझे लंदन की याद आ रही है..
आप लौट आये और हम जा रहे हैं इस इतवार को.
:)
aisa hi hota hai.. jahan ham nahi hote vahan ki yaad jyada aati hai.. bhale hi vahan hone par us jagah ko galiyan dete rahe..
इस देश का तो ढर्रा ही बिगडा हुआ है, लौट के आइए, अपन दोनों मिल कर कुछ करते हैं.
थोड़ा पुष्पक से इन्सपायर होते तो कैसेट ही रेकार्ड कर लाते....
वैसे मन में गूँजती आवाज़ का बाहर के शोर या सन्नाटे से से कितना ताल्लुक है ?!!
काफी जीवंत माहौल तैयार किया है आपने संवादों से.
बधाई स्वीकार करें.
सजीव चित्रण है
आपका नोस्टेल्जिया जायज है
- लावण्या
बहुत खूब.
हम तो ये समझ कर पढ रहे थे कि कोइ पौडकास्ट होगा, आडियो डायरी होगी। लेकिन आपने तो घर्र तड़ तड़ घूँ वाला आडियो दिया है किंतु बहुत आनंद आया। ऐसा लिखने वाले कम लोग हैं।
अच्छी पाँडकास्ट है और इतना जीवंत लिखा है कि इसे टेलीकास्ट भी कह सकते है !!
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