21 मार्च, 2007

रोम-रोम नहीं, जीन में बसे हैं राम?

ईश्वर के अस्तित्व के सवाल पर वैज्ञानिकों को कायल करना उतना ही कठिन है जितना जॉर्ज बुश को इस्लाम स्वीकार करने के लिए राज़ी करना.

ईश्वर आस्था के ईंधन से चलता है और विज्ञान तर्क की टुटही बैसाखी पर, टुटही इसलिए कि तर्क वहीं तक साथ देता है जहाँ तक आप जानते हैं. जानने की सबसे बड़ी निशानी यही जानना है कि आप क्या-क्या नहीं जानते. ईश्वर क्या है, है या नहीं है, कैसा है... इसके बारे हम कितना जानते हैं?

हालाँकि ऐसे सफल वैज्ञानिक भी हैं जिनका ईश्वर में विश्वास रहा है जिनमें अल्बर्ट आइंस्टाइन से लेकर अब्दुल कलाम तक शामिल हैं लेकिन ईश्वर में आस्था रखने वाले लगभग सभी वैज्ञानिक जानते हैं कि विज्ञान के तर्कों से ईश्वर का अस्तित्व साबित करना लगभग असंभव काम है.

अमरीका के एक नामी-गिरामी वैज्ञानिक हैं डॉक्टर डीन हेमर जिनका कहना है कि ईश्वर के अस्तित्व की बहस को थोड़ी देर के लिए किनारे रखकर यह देखना चाहिए कि क्या इंसान के अंदर ऐसे जीन मौजूद हैं जो उसे आध्यात्मिक या धार्मिक बनाते हैं.

उनका कहना है कि हमारे भीतर होने वाली हर क्रिया-प्रतिक्रिया का आधार जैव-रासायनिक है और उसके परिणाम भी जैव-रासायनिक होते हैं. शराब-सिगरेट की लत, समलैंगिकता, आपराधिक मनोवृत्ति, मानसिक रोग इन सबका मनुष्य की जेनेटिक संरचना से सीधा संबंध वैज्ञानिक स्थापित कर चुके हैं.

अगर हमारी क़द-काठी, रंग-रूप और व्यवहार जैसी चीज़ें हमारी जेनेटिक संरचना का परिणाम हो सकती हैं तो धर्म को लेकर हमारे रूझान क्यों नहीं?

डॉक्टर हेमर का दावा है कि उन्होंने ऐसे जीन की तलाश भी कर ली है जिनकी वजह से कोई व्यक्ति धार्मिक होता है और जिनकी अनुपस्थिति किसी को नास्तिक बनाती है.

जो नास्तिक हैं (पता नहीं डॉक्टर हेमर के खोजे हुए कथित जीन की कमी की वजह से या वामपंथी साथियों के संगत की वजह से) वे कहेंगे कि ईश्वर नहीं है लेकिन एक जीन की वजह से लोगों को ईश्वर के होने का भ्रम होता है.

जो आस्तिक हैं (डॉक्टर हेमर के कथित जीन की मौजूदगी की वजह से या घर में बचपन से पिलाई गई घुट्टी के कारण) वे कहेंगे कि ईश्वर है और उसी ने यह जीन बनाया है ताकि मनुष्य को उसका आभास हो सके.

मुझ जैसे भ्रमित लोगों के बारे में डॉक्टर हेमर ने कुछ नहीं कहा है. मेरे जैसे लोगों में वह जीन शायद आधा होता है या फिर भ्रमित करने वाला जीन अलग होता है.

डॉक्टर हेमर का दावा कितना सही है या कितना ग़लत इस पर कोई पक्की वैज्ञानिक राय उपलब्ध नहीं है, मैं तो हूँ ही भ्रमित, आप क्या कहते हैं?

(अगर आप गूगल पर जाकर god gene कीवर्ड से सर्च करें तो आपको टाइम पत्रिका की कवर स्टोरी मिलेगी जो डॉक्टर हेमर के दावे पर आधारित है.)

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